कबीर, राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नाहीं संसार।
Holy Scriptures
Wednesday, August 5, 2020
Janmastmi: Lord Krishna
कबीर, राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नाहीं संसार।
Tuesday, July 14, 2020
Guru Purnima
यदि उस प्राणी ने मानव शरीर में गुरु बनाकर धर्म (दान-पुण्य) यज्ञ की होती तो वह या तो मोक्ष प्राप्त कर लेता। यदि भक्ति पूरी नहीं हो पाती तो मानव जन्म अवश्य प्राप्त होता तथा मानव शरीर में वे सर्व सुविधाएं भी प्राप्त होती जो कुत्ते के जन्म में प्राप्त थी। मानव जन्म में फिर कोई साधु सन्त-गुरु मिल जाता और वह अपनी भक्ति पूरी करके मोक्ष का अधिकारी बनता। इसलिए कहा है कि यज्ञों का वास्तविक लाभ प्राप्त करने के लिए पूर्ण गुरु
को धारण करना अनिवार्य है।
कबीर जी ने सांसारिक प्राणियों को ज्ञान का उपदेश देते हुए कहा है की जो मनुष्य गुरु को सामान्य प्राणी (मनुष्य) समझते हैं उनसे बड़ा मूर्ख जगत में अन्य कोई नहीं है, वह आंखों के होते हुए भी अन्धे के समान हैं तथा जन्म-मरण के भव-बंधन से मुक्त नहीं हो पाते । विषय ज्ञान देने वाले गुरू से श्रेष्ठ आध्यात्मिक ज्ञान देने वाला गुरू होता है जो जगत का पालनहार होता है। (पढ़ें पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा)
असली गुरु कौन होता है?
जो मनुष्य को आत्म और परमात्म ज्ञान का भेद बताए आत्म ज्ञान जिससे मनुष्य को यह ज्ञान होता है कि आत्मा न तो नर है न नारी वह किसी और चोले में है। परमात्म ज्ञान जिससे मनुष्य को यह ज्ञान होना कि परमात्मा कौन है , कैसा है, कहां रहता है, पृथ्वी पर कब और क्यों आता है , मनुष्य और परमात्मा का क्या संबंध है? ऐसा उच्च कोटि का ज्ञान कोई साधारण गुरू नहीं दे सकता । इसके लिए सतगुरू की तलाश करनी चाहिए।
बौद्ध ज्ञान से मोक्ष असंभव
गुरु पूर्णिमा बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध, जिन्होंने ‘मोक्ष’ की तलाश में अपना राज्य और सिंहासन त्याग दिया था, ने इस शुभ दिन पर अपना पहला उपदेश दिया था जिसे कुछ लोगों द्वारा बुद्ध पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। परंतु सनद रहे गौतम बुद्ध का अपना कोई गुरू नहीं था उनका ज्ञान व्यवहारिक और साधारण था तथा आत्म और परमात्म ज्ञान से कोसों दूर था। गौतम बुद्ध के ज्ञान से न तो लाभ संभव है न मोक्ष। जब मोक्ष गौतम बुद्ध का ही नहीं हुआ तो बुद्ध धर्म को जीवित रखने वालों का कैसे संभव है। स्वप्न में भी नहीं।
सतगुरु खोजे संत, जीव काज को चाहहु |
मेटो भव के अंक, आवा गवन निवारहु ||
हे मनुष्यों! यदि अपने जीवन का कल्याण चाहते हो, तो सतगुरु की खोज करो जो आपके पाप मिटाकर आपको जन्म – मरण से रहित कर देगा।
गुरु अनेक हैं पर साचा गुरू कौन?
जो मिस्त्री का काम सिखाए वह भी गुरू,जो बाल काटने सिखाए, कपड़ा सिलना सिखाए, जो खाना बनाना सिखाए ,माता पिता चलना और जीना सिखाते , रिश्तेदार रिश्ते निभाना , अध्यापक शिक्षा का महत्व बताते हैं यह सभी अपनी तरह के अलग गुरू हैं। जो आपको आर्ट आफ लिविंग सिखाए ,योगा सिखाने, कुण्डली साधना सिखाए ,यहां वहां का ज्ञान बांचें , ब्रह्म तक की साधना बताएं, मुरली सुनाएं ,करनैनों दीदार तक का ज्ञान दें समाज में ऐसे व्यवहारिक गुरूओं की कमी नहीं है।
विश्व की वर्तमान जनसंख्या 7.61 अरब है और हर व्यक्ति को अपनी ज़िंदगी में एक मसीहा या गुरू की आवश्यकता होती है। साक्षर ज्ञान कराने वाला गुरू सम्माननीय है परंतु जो सहज में अध्यात्म ज्ञान दे दे उससे बड़ा दूसरा कोई और गुरु नहीं।
माता पिता भी गुरू की तरह ही होते हैं। जो समय समय पर मार्ग दर्शन करते हैं। परंतु प्रत्येक व्यक्ति को एक ऐसा गुरू चाहिए जो सबको एक जैसा ज्ञान दे,जो आत्मा की ज़रूरत को समझे, आखिर ऐसा गुरू कौन है? जो आर्ट ऑफ लिविंग,योगा, व्यवहारिक, सामाजिक ज्ञान से हटकर पूर्ण परमात्मा का सच्चा ज्ञान दे, जो वाकई में पूजनीय हो। सामाजिक गुरू सम्माननीय होते हैं परंतु पूजनीय तो केवल एक कबीर है।
जो प्राणी गुरु की महिमा का सदैव बखान करता है और उनके आदेशों का प्रसन्नता पूर्वक पालन करता है उस प्राणी का पुनः इस भव बन्धन रुपी संसार में आगमन नहीं होता । संसार के भव चक्र से मुक्त होकर सतलोक को प्राप्त होता है । अर्थात् सदा गुरू रुप में आए परमात्मा द्वारा दी गई सतभक्ति का अनुसरण करें। जाप/सिमरन जो गुरू/सतगुरू जी दें उसका निरंतर जाप करते रहें तो मोक्ष संभव है।
परमेश्वर कबीर साहेब जो न केवल संत हैं बल्कि परमात्मा भी स्वयं हैं उन्होंने प्रत्येक युग में गुरू की महिमा का बखान किया है। यदि नानक देव जी,मीरा बाई ,इंद्रमति, प्रहलाद, ध्रुव,रविदास जी,सिकंदर लोदी, धर्मदास जी, दादू जी, नल नील , गरीबदास जी को कबीर साहेब जी गुरू रूप में आकर न मिलते तो इनका उद्धार संभव नहीं था। इन सभी महानुभावों ने गुरु महिमा और उनके चरणों में अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। समाज से उलाहने सुने परंतु अपना आत्म उद्धार करवाने का उद्देश्य कभी नहीं छोड़ा।
परमात्मा ही गुरु की भूमिका स्वयं निभाते हैं
गुरु बनाने से पहले यह जानना भी ज़रूरी है कि गुरू का गुरू कौन है जैसे डाक्टर से इलाज करवाने से पहले उसकी डिग्री देखते हैं, अध्यापक को नौकरी पर रखने से पहले उसका शिक्षा संबंधी बैकग्राउंड चैक करते हैं उसी प्रकार गुरू बनाने से पहले यह जांचना ज़रूरी है कि गुरू , गुरू कहलाने लायक भी है या नहीं।
कबीर साहेब जी 600 वर्ष पूर्व काशी में आए थे जब उन्होंने पांच वर्ष की आयु में 104 वर्षीय रामानंद जी को अपना गुरू बनाया। अति आधीन रहकर गुरू शिष्य परंपरा का निर्वाह किया व समाज को यह उदाहरण करके दिखाया कि जब सृष्टि का पालनहार गुरू बनाकर नियम में रहकर भक्ति कर रहा है तो आप किस खेत की मूली हैं।
Tuesday, July 7, 2020
Mahashivratri
- महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है |
शिवरात्रि हर महीने चतुर्दशी तिथि को पड़ती है लेकिन फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी महाशिवरात्रि कहते हैं। महाशिवरात्रि के दिन शिव के भक्त कांवड़ से गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। महाशिवरात्रि का व्रत महिलाओं के लिए खास महत्व का माना गया है। मान्यता है कि अविवाहित कन्या विधिपूर्वक इस व्रत को रखती हैं तो उनकी शादी शीघ्र ही हो जाती है। वहीं विवाहित महिलाएं अपने सुखद वैवाहिक जीवन के लिए भी इस व्रत को धारण करती हैं। महाशिवरात्रि के विषय में धार्मिक मान्यता यह भी है कि इस दिन शिव और पार्वती का विवाह हुआ था।
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है |
पहली बार प्रकट हुए थे शिवजी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका न तो आदि था और न अंत। बताया जाता है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्माजी हंस के रूप में शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। वह शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए। दूसरी ओर भगवान विष्णु भी वराह का रूप लेकर शिवलिंग के आधार ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला।
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है |
महाशिवरात्रि को पूरी रात शिवभक्त अपने आराध्य जागरण करते हैं। शिवभक्त इस दिन शिवजी की शादी का उत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि को शिवजी के साथ शक्ति की शादी हुई थी। इसी दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। शिव जो वैरागी थी, वह गृहस्थ बन गए। माना जाता है कि शिवरात्रि के 15 दिन पश्चात होली का त्योहार मनाने के पीछे एक कारण यह भी है।
क्या शिवलिंग की पूजा करना सही है
यह बात श्रद्धालुओ को ऐसी लगेगी जैसे गलत बोला जा रहा है लेकिन बात यह सत्य है कि केवल शिव पूजा से मोक्ष नहीं मिलता, क्योंकि शिवजी की आराधना ही मोक्ष का आधार नहीं है ।
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है |
■ श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार
अध्याय 3 के श्लोक 9 में कहा है कि निष्काम भाव से शास्त्र अनुकूल किये हुए धार्मिक कर्म ( यज्ञ ) लाभ दायक है।
अध्याय 3 के श्लोक 6 से 9 में एक स्थान पर आँख बंद करके बैठ कर हठ योग करने को या समाधि लगाने को बिल्कुल मना किया है । कहा है कि शास्त्र अनुकूल भक्ति साधना करना ही लाभदायक है ।
अध्याय 8 के श्लोक 16 व अध्याय 9 का श्लोक 7 में बताया है कि ब्रह्म लोक से लेकर ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी आदि के लोक और ये स्वयं भी जन्म मरण व प्रलय में है । इसलिए ये अविनाशी नहीं हैं । जब ये अविनाशी नहीं है तो इनके उपासक भी जन्म मरण में ही हैं ।
देवी देवताओं व तीनों गुणों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की पूजा करना तथा भूत पूजा, पितर पूजा, यह सब व्यर्थ की साधना है इन्हें करने वालों को घोर नरक में जाना पड़ेगा । अध्याय 7 का श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 व अध्याय 9 के श्लोक 25 में यह प्रमाण है ।
व्रत करने से भक्ति असफल है। योग न तो बहुत अधिक खाने वाले का और बिल्कुल न खाने वाले का सिद्ध नहीं होता। अध्याय 6 के श्लोक 16 में प्रमाण है ।
जो शास्त्र अनुकूल यज्ञ हवन आदि पूर्ण गुरु के माध्यम से नहीं करते उन्हे लाभ नहीं होता। अध्याय 3 के श्लोक 12 में प्रमाण है
ब्रह्म (काल – क्षर पुरुष) सदाशिव की उत्पत्ति अविनाशी (पूर्ण ब्रह्म) परमात्मा से हुई है ।
अध्याय 3 के श्लोक 14 व 15 में प्रमाण है।
भगवान तीन हैं:- क्षर (ब्रह्म) पुरुष, अक्षर पुरुष (परब्रह्म) और परम अक्षर पुरुष (पूर्ण ब्रह्म) । अध्याय 15 के श्लोक 16,17 व 18 में प्रमाण है।
जिनमें से मोक्ष केवल पूर्ण ब्रह्म की भक्ति साधना से ही मिल सकता है । फिर हम कैसे कह सकते है कि केवल शिव जी की भक्ति साधना करने से पूर्ण लाभ मिल सकता है ।
कबीर साहेब जी ने कहा है
तीन देव (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की जो करते भक्ति, उनकी कभी न होवे मुक्ति।
वेद कतेव झूठे न भाई, झूठे वो जो इनको समझे नाही
अर्थ: वेद पुराण झूठे नहीं है, झूठे वो व्यक्ति हैं जो इनको समझ नहीं पा रहे हैं ।
पूर्ण मोक्ष के अभिलाषी भक्तजन कैसे भक्ति करें?
इस मास में जो भी पूजा साधना की जा रही है वह बिल्कुल भी शास्त्र अनुकूल भक्ति विधि नहीं है। शास्त्रों के अनुसार भक्ति विधि केवल तत्वदर्शी संत ही बता सकते है ।
प्रमाण है गीता जी का अध्याय 15 के श्लोक 1 से 4 व 16 , 17 में ।
आध्यत्मिक ज्ञान ही मोक्ष का सार है । यह ज्ञान वर्तमान में केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पास है उनका ज्ञान सुनें और समझें । सभी साधन उपलब्ध है और पढ़े लिखे भक्त वेदों पुराणों और अन्य शास्त्रों से मिलान भी कर सकते हैं । यह मानव जन्म बार बार नहीं मिलता है अतः लख चौरासी से बाहर जाने के लिए मोक्ष मार्ग का चयन ध्यान पूर्वक करें ।
Wednesday, July 1, 2020
RakshaBandhan
Why Raksha Bandhan is celebrated |
सदियों से चली आ रही रीति के मुताबिक, बहन भाई को राखी बांधने से पहले प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधती है जिसे वृक्ष-रक्षाबंधन भी कहा जाता है. हालांकि आजकल इसका प्रचलन नही है. राखी सिर्फ बहन अपने भाई को ही नहीं बल्कि वो किसी खास दोस्त को भी राखी बांधती है जिसे वो अपना भाई जैसा समझती है और तो और रक्षाबंधन के दिन पत्नी अपने पति को और शिष्य अपने गुरु को भी राखी बांधते है.
पौराणिक संदर्भ के मुताबिक-
पौराणिक कथाओं में भविष्य पुराण के मुताबिक, देव गुरु बृहस्पति ने देवस के राजा इंद्र को व्रित्रा असुर के खिलाफ लड़ाई पर जाने से पहले अपनी पत्नी से राखी बंधवाने का सुझाव दिया था. इसलिए इंद्र की पत्नी शचि ने उन्हें राखी बांधी थी.
एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक, रक्षाबंधन समुद्र के देवता वरूण की पूजा करने के लिए भी मनाया जाता है. आमतौर पर मछुआरें वरूण देवता को नारियल का प्रसाद और राखी अर्पित करके ये त्योहार मनाते है. इस त्योहार को नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है.
ऐतिहासिक संदर्भ के मुताबिक-
ये भी एक मिथ है कि है कि महाभारत की लड़ाई से पहले श्री कृष्ण ने राजा शिशुपाल के खिलाफ सुदर्शन चक्र उठाया था, उसी दौरान उनके हाथ में चोट लग गई और खून बहने लगा तभी द्रोपदी ने अपनी साड़ी में से टुकड़ा फाड़कर श्री कृष्ण के हाथ पर बांध दिया. बदले में श्री कृष्ण ने द्रोपदी को भविष्य में आने वाली हर मुसीबत में रक्षा करने की कसम दी थी.
ये भी कहा जाता है कि एलेक्जेंडर जब पंजाब के राजा पुरुषोत्तम से हार गया था तब अपने पति की रक्षा के लिए एलेक्जेंडर की पत्नी रूख्साना ने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुनते हुए राजा पुरुषोत्तम को राखी बांधी और उन्होंने भी रूख्साना को बहन के रुप में स्वीकार किया.
एक और कथा के मुताबिक ये माना जाता है कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने सम्राट हुमायूं को राखी भिजवाते हुए बहादुर शाह से रक्षा मांगी थी जो उनका राज्य हड़प रहा था. अलग धर्म होने के बावजूद हुमायूं ने कर्णावती की रक्षा का वचन दिया.
रक्षाबंधन का संदेश-
रक्षाबंधन दो लोगों के बीच प्रेम और इज्जत का बेजोड़ बंधन का प्रतीक है. आज भी देशभर में लोग इस त्योहार को खुशी और प्रेम से मनाते है और एक-दूसरे की रक्षा करने का वचन देते हैं
रक्षा बंधन पैसे और उपहारों का लेन-देन है
अब यह त्यौहार नहीं केवल रस्म भर रह गया है। बाज़ार रक्षाबंधन के उपलक्ष्य में पैसा कमाने की मंशा से भर जाते हैं। सभी छोटे बड़े व्यापारी,हलवाई, ब्यूटी पार्लर, मेंहदी लगाने वाले, राखी बेचने वालों का उद्देश्य रक्षाबंधन तक अपनी मोटी कमाई कर लेना भर रह गया है। समाज में औरत के प्रति पुरूषों की मानसिकता अति कमज़ोर है। अपनी बहन, बेटी और मां के अलावा दूसरे की बहन की इज्ज़त करने वालों की संख्या बहुत ही कम है।
रक्षा की प्रार्थना तो केवल परमात्मा से करनी चाहिए
आज के समय में शादी, पढा़ई और देश सेवा के उद्देश्य से दूर हुए भाई – बहन सालों साल एकदूसरे से मिलना तो दूर रक्षाबंधन के दिन भी आपस में मिल नहीं पाते हैं। देश की सेवा की खातिर बार्डर पर तैनात भाई रक्षाबंधन के दिन बहन और परिवार के पास छुट्टी न मिलने के कारण पहुंच नहीं पाते। कई बार समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों के माध्यम से पढ़ने और देखने को मिलता है कि रक्षाबंधन से पहले देशसेवा के दौरान फौजी भाई की शहादत के चलते उसका पार्थिव शरीर उसके घर पहुंचता है। कितने ही भाई- बहन सड़क दुघर्टना, बिमारी और अकस्मात मृत्यु के कारण मर जाते हैं। तब रक्षासूत्र इनकी रक्षा क्यों नहीं कर पाता। किसी बहन की करूण प्रार्थना उसके ईष्ट देव तक क्यों नहीं पहुंच पाती?
पूर्ण परमात्मा से ही करनी चाहिए सलामती की प्रार्थना
इस समय संपूर्ण विश्व गहन उथल-पुथल के दौर से गुज़र रहा है। भारत के अधिकांश राज्य इस समय भंयकर तूफान और बाढ़ की चपैट में हैं। जिसके कारण लोग अपनों को और संपत्ति तक खो चुके हैं। ऐसे में एक बहन और भाई एक-दूजे की रक्षा करने में पूरी तरह से असमर्थ दिखाई देते हैं। वह दोनों असहाय हैं। प्राकृतिक आपदा हो या फिर किसी जानलेवा शारीरिक बीमारी के चलते बहन और भाई दोनों ही एक-दूसरे की मदद नहीं कर सकते। रक्षा करने वाला तो केवल परमात्मा है। जिनसे हमें प्रतिदिन, प्रतिक्षण अपनी और अपने परिवार की सलामती की दुआ करनी चाहिए ।
ये पिछलों की रीत हमें छोड़नी होगी
परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि कलयुग में कोई बिरला ही भक्ति करेगा अन्यथा पाखण्ड तथा विकार करेंगे। आत्मा भक्ति बिना नहीं रह सकती, परंतु कलयुग में मन (काल का दूत है मन) आत्मा को अधिक आधीन करके अपनी चाल अधिक चलता है। कलयुग में मनुष्य ऐसी भक्ति करेगा जो लोकवेद पर आधारित होगी जिसमें दिखावा, खर्च तो अधिक होगा परंतु परमेश्वर से मिलने वाला लाभ शून्य होगा। लोकवेद और शास्त्र विरुद्ध साधना में लगा हुआ मनुष्य , समाज में प्रचलित झूठी दिखावटी भक्ति करेगा। त्योहार, जन्मदिन, दहेज देना और लेना, मांस भक्षण, नशा करना, पूजा, हवन, कीर्तन, जागरण, तांत्रिक पूजा, शनि, राहू, ब्रहमा, विष्णु, शंकर, दुर्गा जी पर आरूढ़ रहेगा और पूर्ण परमात्मा की भक्ति को नहीं समझ पाने के कारण सदा माया में उलझा रहेगा। शास्त्र विरुद्ध साधना के कारण ही मानव का बौद्धिक, शारीरिक और सामाजिक स्तर गिर गया है। पूर्ण परमात्मा से मिलने वाले लाभों के अभाव में प्राकृतिक आपदाएं मानव के लिए चुनौती बन गई हैं।
Tuesday, June 23, 2020
Jagannath Temple
- जगन्नाथ मंदिर का रहस्य
उड़ीसा प्रांत में एक इंद्रधमन नाम का राजा था जो श्री कृष्ण जी के अनन्य भक्त था एक रात्रि श्री कृष्ण जी ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि जगन्नाथ नाम से मेरा एक मंदिर बनवा दो
श्री कृष्ण जी ने यह भी कहा था कि इस मंदिर में कोई भी मूर्ति पूजा नहीं होगी केवल इसमें एक संत छोड़ना है जो दर्शकों को पवित्र गीता अनुसार ज्ञान प्रचार करे स्वप्न में समुन्द्र तट वह स्थान भी दिखाया जहां पर मंदिर बनाना था ।सुबह उठकर राजा इंद्रध्मन ने अपनी पत्नी को यह बात बताई की आज रात्रि में श्री कृष्ण भगवान दिखाई दिए और मंदिर बनवाने के लिए कहा है। रानी ने कहा की नेक काम में देरी क्या ? सबकुछ उन्हीं का तो दिया हुआ है। उन्हीं को समर्पित करने में क्या सोचना? राजा ने उसी स्थान पर मंदिर बनवा दिया जो श्री कृष्ण जी ने स्वप्न में समुंदर के किनारे पर दिखाया था मंदिर बनने के बाद ,समुद्री तूफान उठा और मंदिर को तोड़ दिया । निशान भी नहीं बचा कि यहां पर मैं कोई मंदिर भी था। ऐसे ही राजा ने पांच बार मंदिर बनवाया पांचो बार समुंदर ने मंदिर को तोड़ दिया।
राजा ने निराश होकर मंदिर में बढ़ाने का निर्णय लिया। यह सोचा कि न जाने समुद्र कौन से जन्म का प्रतिशोध ले रहा है। कोष भी रिक्त हो गया। मंदिर बना नहीं। कुछ समय पश्चात पूर्ण परमेश्वर ज्योति निरंजन को दिए हुए वचन के अनुसार राजा इंद्रधमन के पास आए। तथा कहा की राजा आपको क्या परेशानी है तो राजा ने उन्हें अपनी सारी कहानी बधाई संत रूप में आए पूर्ण परमात्मा ने राजा से कहा की आप अब मंदिर बनवाओ अब मैं रक्षा करूंगा लेकिन राजा को विश्वास नहीं हुआ और कहा कि संत जी मुझे विश्वास नहीं हो रहा है। मैं भगवान श्री कृष्ण जी के आदेश अनुसार मंदिर बनवा रहा हूं लेकिन जब भगवान श्री कृष्ण जी की मंदिर की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं। अर्थात समुंद्र को नहीं रोक पा रहे हैं मैं पांच बार मंदिर बनवा चुका हूं और पांचों बार ही समुंदर ने मंदिर को तहस-नहस कर दिया। मैं यह सोचकर मंदिर बनवा रहा था कि भगवान मेरी परीक्षा ले रही हैं। परंतु अब तो मैं परीक्षा देने योग्य ही नहीं रहा हूं। क्योंकि कोष रिक्त हो गया है। राजा ने कहां की अब मंदिर बनवाना मेरे बस की बात नहीं है। परमेश्वर कबीर साहिब जी ने कहां की वह पूर्ण परमात्मा ही सभी कार्य करने में सक्षम है जिसने इस सृष्टि को बनाया है। अन्य प्रभु नहीं। मैं उस परमेश्वर के वचन से शक्ति प्राप्त हो। मैं समुंदर को रोक सकता हूं। मैं नहीं मान सकता की श्री कृष्ण जी से भी कोई प्रबल शक्ति युक्त प्रभु है। जब वही समुंद्र को नहीं रोक पाए तो आप कौन से खेत की मूली हो। मुझे विश्वास नहीं होता तथा और ना ही वित्तीय स्थिति मंदिर बनवाने की है। संत रूप में आए कबीर देव ने कहा कि राजन अगर मंदिर बनवाने का मन करें तो मेरे पास आ जाना। मैं अमुक स्थान पर रहता हूं। अब के समुंदर मंदिर को नहीं तोड़ पाएगा यह कह कर प्रभु चले जाए
उसी रात्रि में प्रभु श्री कृष्ण जी ने फिर राजा इंद्र दमन को दर्शन दिए तथा कहा इंद्र दमन एक बार फिर महल बनवा दे जो तेरे पास संत आया था उससे संपर्क करके सहायता की याचना कर ले वह ऐसा वैसा संत नहीं है उसकी शक्ति का कोई वार् - पार नहीं है। राजा इंद्र दमन नींद से जागा स्वपन का पूरा वृतांत अपनी रानी को बताया। रानी ने कहा प्रभु कह रही है तो आप मत चूको। प्रभु का महल फिर से बनवा दो। रानी की सद्भावना युक्त वाणी सुनकर राजा ने कहा अब तो कोर्स भी खाली हो चुका है। यदि मंदिर नहीं मैं बनवाऊंगा, तो प्रभु प्रसन्न हो जाएंगे। मैं तो धर्मसंकट में फस गया हूं। रानी ने कहा आप मेरे गहने रखे हैं उनसे आसानी से मंदिर बन जाएगा। आप यह गहने लो तथा जो पहन रखे थे निकालकर कहते हुए रानी ने सर्व गहने जो घर पर रखे थे तथा जो पहन रखे थे निकालकर प्रभु के निमित्त अपने पति के चरणों में समर्पित कर दिया तथा राजा इंद्र दमन उसी स्थान पर गया जो परमेश्वर ने संत रूप में आकर बताया था।
कबीर प्रभु को खोज कर समुंदर को रोकने की प्रार्थना की। प्रभु कबीर जी ने कहा कि जिस तरफ से समुद्र उठकर आता है वहां समुंदर के किनारे एक चोरा बनवा दो। सुपर बैठकर मैं प्रभु की भक्ति करूंगा तथा समुंद्र को रोकुंगा। राजा ने समुद्र के किनारे एक चोरा बनवा दिया तथा कबीर साहिब जी उस पर बैठ गए। छठी बार मंदिर बनना प्रारंभ हुआ।
कबीर जी ने मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया समुंद्र भी मंदिर को गिराने के लिए उच्च वर्ग के साथ उठता था और ऐसा असहाय हो जाता था और रुक जाता था क्योंकि कबीर भगवान हाथ उठाते थे और अपनी शक्ति से समुंद्र को रोक देते थे। तब समुद्र ने कबीर जी से निवेदन किया की मैं आपके समक्ष शक्तिहीन हूं।मैं तुमसे जीत नहीं सकता लेकिन मैं अपना बदला कैसे लूं कृपया समाधान बताइए कभी भगवान ने कहा कि आप द्वारिका को अपने में विलीन कर लो और अपना क्रोध शांत करो क्योंकि द्वारिका खाली थी वह स्थान जहां कबीर जी ने समुद्र को रोका था वह स्मारक के रूप में एक गुम्बद आज भी मौजूद है। वर्तमान में एक के महंत वहां रहते हैं।
उसी दौरान नाथ उत्तराधिकारी का एक सिद्ध महात्मा आया और उसने राजा से कहा एक मूर्ति के बिना यह एक मंदिर कैसे होगा? चंदन से मूर्ति बनाकर मंदिर में स्थापित करो। राजा को 3 मूर्ति बनाने का आदेश दिया। राजा सिद्ध महात्मा आदेश मानकर मूर्ति बनाने का कार्य शुरू किया तथा मूर्ति पूर्ण होने के बाद मूर्ति पूरी ट्रक टूट जाती थी राजा चितिंत तो गया। सुबह जब राजा अपने शाही दरबार में पहुंचे तब कबीर परमेश्वर एक शिल्पकार के रूप में आए और उन्होंने राजा से कहा कि मेरे पास 60 वर्षों का अनुभव है। मैं मूर्तियां बनाऊंगा और वह टूटेंगे नहीं।मुझे एक कमरा दो जिसमें मैं मूर्तियां बना लूंगा और जब तक मूर्ति नहीं बनती तब तक मैं अंदर ही रहूंगा और कोई दरवाजा नहीं भोलेनाथ चाहिए क्योंकि अगर बीच में ही दरवाजा खोला तो मूर्ति जितनी बनी है उतनी ही रह जाएगी राजा ने यह सुनकर कहा कि ऐसा ही होगा वहां कुछ दिनों के बाद नाथ जी फिर से आए, और उनसे पूछने पर राजा ने पूरी कहानी बताई। तब नाथ जी ने कहा शिल्पकार पिछले 10-12 दिनों से मूर्ति बना रहा है। ऐसा ना हो कि वह गलत तरीके से मूर्ति बना रहा है हमें मूर्तियों को देखना चाहिए यह सोच कर वह कमरे में दाखिल हुए फिर वहां पर कभी परमेश्वर नहीं थे वहां से भी गायब हो गई थी तीन मूर्तियां बनाई गई थी लेकिन बाधित होने कारण मूर्तियों के हाथों और पैरों के अंग नहीं बने थे इसलिए मूर्तियों को बिना अंग के मंदिर में रखा गया
कुछ समय पश्चात कुछ पंडित जगन्नाथ पुरी मंदिर में मूर्तियों का अभिषेक करने पहुंचे। मंदिर के दरवाजे के सामने मंदिर के सामने कभी भगवान खड़े थे अमन पंडित जी ने कभी परमात्मा को अछूत कहते हुए उन्हें धक्का दिया और मंदिर में प्रवेश किया।आवेश करने पर उन्होंने देखा कि सभी मूर्तियों में कबीर भगवान की उपस्थिति प्राप्त कर ली थी पंडित विश्व में में पड़ गया तथा बाद में पंडित ने कबीर भगवान को अछूत कह कर दिखा दिया जो कुष्ठ रोगी थे। लेकिन दयालु भगवान कबीर जी ने उसे ठीक कर दिया। उसके बाद जगन्नाथ पुरी मंदिर में कभी भी अछूत का अभ्यास नहीं किया गया।
ऐसे ही श्री जगन्नाथ जी का मंदिर अर्थात नाम स्थापित हुआ
Wednesday, June 17, 2020
Janmashtami: lord Krishna
जन्माष्टमी पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने हेतु कृष्ण रूप में अवतार लिया, भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्ररूप में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
Krishna janmashtami |
श्री कृष्ण जी ने अनेक लीलाएं की श्री कृष्ण जी ने इस धरती से पापियों से बचाया तथा सभी को सुख प्रदान किया लेकिन श्री कृष्ण जी पूर्ण परमात्मा नहीं है क्योंकि उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता जी में स्वयं ने कहा है श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय नंबर 18 श्लोक नंबर 62 में अर्जुन को बताया कि मेरे से सर्वश्रेष्ठ शक्तिशाली भगवान कोई और है इसलिए आप उनकी शरण में जाओ इससे सिद्ध होता है कि श्री कृष्ण जी पूर्ण परमात्मा नहीं है वह केवल तीन लोक के पूर्ण परमात्मा है
Lord Krishna |
Tuesday, June 9, 2020
Bible
Bible
Bible
Thursday, June 4, 2020
Sinner god
situation, we should do according to the scriptures with us and in all our scriptures to worship God Has said that one should do devotion to one who takes away all the miseries, it is also called a destroyer of sins. Yajurveda Chapter 5 Mantra 32 has said
"Ushigashi Kavirangharrisi Bambharisi Asi"
That means Kabir Parmeshwar, the God of complete peace Kabir is the enemy of the *enemy* , that is, Kabir is the enemy
Wednesday, June 3, 2020
कबीर परमेश्वर का ज्ञान
Monday, June 1, 2020
कबीर परमेश्वर मघर से सह शरीर सतलोक जाना तथा मगर लीला
Sunday, May 31, 2020
चमत्कार
Saturday, May 30, 2020
सत भक्ति
Friday, May 29, 2020
कबीर परमात्मा प्रकट दिवस
Tuesday, May 19, 2020
बेरोजगारी
Wednesday, May 13, 2020
कन्या भ्रूण हत्या
कन्या भ्रूण हत्या किसे कहते हैं
कन्या भ्रूण हत्या, लड़कों को प्राथमिकता देने तथा कन्या जन्म से जुड़े निम्न मूल्य के कारण जान बूझकर की गई कन्या शिशु की हत्या होती है। ये प्रथाएं उन क्षेत्रों में होती हैं जहां सांस्कृतिक मूल्य लड़के को कन्या की तुलना में अधिक महत्व देते हैं।
कन्या भ्रूण हत्या के कुछ तत्य
- यूनीसेफ (UNICEF) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सुनियोजित लिंग-भेद के कारण भारत की जनसंख्या से लगभग 5 करोड़ लड़कियां एवं महिलाएं गायब हैं।
- विश्व के अधिकतर देशों में, प्रति 100 पुरुषों के पीछे लगभग 105 स्त्रियों का जन्म होता है।
- भारत की जनसंख्या में प्रति 100 पुरुषों के पीछे 93 से कम स्त्रियां हैं।
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में अवैध रूप से अनुमानित तौर पर प्रतिदिन 2,000 अजन्मी कन्याओं का गर्भपात किया जाता है।
- गर्भवती महिला को उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिंग के बारे में जानने के लिए उकसाना;
- गर्भवती महिला पर उसके परिजनों या अन्य व्यक्ति द्वारा लिंग जांचने के लिए दबाव बनाना;
- वे डॉक्टर जो इस तकनीक का दुरूपयोग करते हैं;
- कोई भी ऐसा व्यक्ति अपने घर या बाहर कहीं पर लिंग की जांच के लिए किसी तकनीक का प्रयोग या मशीन का प्रयोग करता है;
- लेबोरेटरी, अस्पताल, क्लीनिक तथा कोई भी ऐसी संस्था जो सोनोग्राफी जैसी तकनीक का दुरुपयोग लिंग चयन के लिए करते हैं
सरकार के द्वारा बनाए गए नियम
भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत प्रावधान : भारतीय दंड संहिता की धारा 312 कहती है: ‘जो कोई भी जानबूझकर किसी महिला का गर्भपात करता है जब तक कि कोई इसे सदिच्छा से नहीं करता है और गर्भावस्था का जारी रहना महिला के जीवन के लिए खतरनाक न हो, उसे सात साल की कैद की सजा दी जाएगी’। इसके अतिरिक्त महिला की सहमति के बिना गर्भपात (धारा 313) और गर्भपात की कोशिश के कारण महिला की मृत्यु (धारा 314) इसे एक दंडनीय अपराध बनाता है। धारा 315 के अनुसार मां के जीवन की रक्षा के प्रयास को छोड़कर अगर कोई बच्चे के जन्म से पहले ऐसा काम करता है जिससे जीवित बच्चे के जन्म को रोका जा सके या पैदा होने का बाद उसकी मृत्यु हो जाए, उसे दस साल की कैद होगी धारा 312 से 318 गर्भपात के अपराध पर सरलता से विचार करती है जिसमें गर्भपात करना, बच्चे के जन्म को रोकना, अजन्मे बच्चे की हत्या करना (धारा 316), नवजात शिशु को त्याग देना (धारा 317), बच्चे के मृत शरीर को छुपाना या इसे चुपचाप नष्ट करना (धारा 318)। हालाँकि भ्रूण हत्या या शिशु हत्या शब्दों का विशेष तौर पर इस्तेमाल नहीं किया गया है , फिर भी ये धाराएं दोनों अपराधों को समाहित करती हैं।
संत रामपाल जी महाराज के द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए किए गए प्रयास
संत रामपाल जी महाराज दहेज प्रथा तथा कन्या भ्रण हत्या को जड़ से खत्म कर रहे हैं तथा समाज में लड़कियों का सम्मान भी लड़कों के तुल्ले होगा ऐसा संत रामपाल जी महाराज अपने अनुयायियों को शिक्षा देते हैं और उन्हें दहेज प्रथा तथा कन्या भ्रूण हत्या को समाप्त करने को कहां है जो कोई भी इस का पालन नहीं करेगा वह इस संसार में दुखी होगा कथा उसका आगे का जीवन भी कष्टदायक होगा संत रामपाल जी महाराज बताते हैं की लड़का हो या लड़की दोनों को समान दृष्टि से देखना चाहिए परमात्मा के दृष्टि में दोनों समान है तो फिर हम उनको अलग अलग कैसे कर सकते हैं यह हमारी सोच है की हम उन्हें अलग अलग समझते हैं
Tuesday, May 12, 2020
बेरोजगारी
‘बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो कि बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम तो करना चाहता है लेकिन उसे काम नही मिल पा रहा है.’
बेरोजगारी की परिभाषा हर देश में अलग अलग होती है. जैसे अमेरिका में यदि किसी व्यक्ति को उसकी क्वालिफिकेशन के हिसाब से नौकरी नही मिलती है तो उसे बेरोजगार माना जाता है.
बेरोजगारी एक गंभीर समस्या है। इसके परिणाम बड़े ही घातक है। इसका दूर होना व्यक्ति और समाज दोनों के हित में है .
इसे संगठित एवं योजनाबद्ध रूप में ही दूर किया जा सकता है सिर्फ सरकारी प्रयास से ही यह संभव नहीं है। बेरोजगारी निवारण में व्यक्ति, समाज और सरकार तीनों संयुक्त सच्चे प्रयास की जरुरत है
बेरोजगारी को दुर करने के लिए संत रामपाल जी महाराज का योगदान
. हमारे देश में बेरोजगारी के बढ़ने के कई कारण हैं जिनमें से एक है भ्रष्टाचार जिसके अंतर्गत योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिलता तथा योग्यता होते हुए भी उसे अपनी योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिल पाता इसका एक ही कारण है कि बढ़ते हुए भ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोरी के कारण उन लोगों को योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिल पा रहा है लेकिन संत रामपाल जी महाराज ने एक बीड़ा उठाया है की हमारा देश भ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोर मुक्त हो इसके चलते उन्होंने अपने शिष्यों को भ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोरी फैलाने पर सख्त पाबंदी लगा रखी है तथा जिससे योग्यता के अनुसार लोगों को रोजगार मिल सके तथा वह अपना जीवन आसानी से बिता सकें