Holy Scriptures

Tuesday, June 23, 2020

Jagannath Temple

  1. जगन्नाथ मंदिर का रहस्य


उड़ीसा प्रांत में एक इंद्रधमन नाम का राजा था जो श्री कृष्ण जी के अनन्य भक्त था एक रात्रि श्री कृष्ण जी ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि जगन्नाथ नाम से मेरा एक मंदिर बनवा दो

श्री कृष्ण जी ने यह भी कहा था कि इस मंदिर में कोई भी मूर्ति पूजा नहीं होगी केवल इसमें एक संत छोड़ना है जो दर्शकों को पवित्र गीता अनुसार ज्ञान प्रचार करे स्वप्न में समुन्द्र तट वह स्थान भी दिखाया जहां पर मंदिर बनाना था ।सुबह उठकर राजा इंद्रध्मन ने अपनी पत्नी को यह बात बताई की आज रात्रि में श्री कृष्ण भगवान दिखाई दिए और मंदिर बनवाने के लिए कहा है। रानी ने कहा की नेक काम में देरी क्या ? सबकुछ उन्हीं का तो दिया हुआ है। उन्हीं को समर्पित करने में क्या सोचना? राजा ने उसी स्थान पर मंदिर बनवा दिया जो श्री कृष्ण जी ने स्वप्न में समुंदर के किनारे पर दिखाया था मंदिर बनने के बाद ,समुद्री तूफान उठा और मंदिर को तोड़ दिया । निशान भी नहीं बचा कि यहां पर मैं कोई मंदिर भी था। ऐसे ही राजा ने पांच बार मंदिर बनवाया पांचो बार समुंदर ने मंदिर को तोड़ दिया।


राजा ने निराश होकर मंदिर में बढ़ाने का निर्णय लिया। यह सोचा कि न जाने समुद्र कौन से जन्म का प्रतिशोध ले रहा है। कोष भी रिक्त हो गया। मंदिर बना नहीं। कुछ समय पश्चात पूर्ण परमेश्वर ज्योति निरंजन को दिए हुए वचन के अनुसार राजा इंद्रधमन के पास आए। तथा कहा की राजा आपको क्या परेशानी है तो राजा ने उन्हें अपनी सारी कहानी बधाई संत रूप में आए पूर्ण परमात्मा ने राजा से कहा की आप अब मंदिर बनवाओ अब मैं रक्षा करूंगा लेकिन राजा को विश्वास नहीं हुआ और कहा कि संत जी मुझे विश्वास नहीं हो रहा है। मैं भगवान श्री कृष्ण जी के आदेश अनुसार मंदिर बनवा रहा हूं लेकिन जब भगवान श्री कृष्ण जी की मंदिर की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं। अर्थात समुंद्र को नहीं रोक पा रहे हैं मैं पांच बार मंदिर बनवा चुका हूं और पांचों बार ही समुंदर ने मंदिर को तहस-नहस कर दिया। मैं यह सोचकर मंदिर बनवा रहा था कि भगवान मेरी परीक्षा ले रही हैं। परंतु अब तो मैं परीक्षा देने योग्य ही नहीं रहा हूं। क्योंकि कोष रिक्त हो गया है।  राजा ने कहां की अब मंदिर बनवाना मेरे बस की बात नहीं है। परमेश्वर कबीर साहिब जी ने कहां की वह पूर्ण परमात्मा ही सभी कार्य करने में सक्षम है जिसने इस सृष्टि को बनाया है। अन्य प्रभु नहीं। मैं उस परमेश्वर के वचन से शक्ति प्राप्त हो। मैं समुंदर को रोक सकता हूं। मैं नहीं मान सकता की श्री कृष्ण जी से भी कोई प्रबल शक्ति युक्त प्रभु है। जब वही समुंद्र को नहीं रोक पाए तो आप कौन से खेत की मूली हो। मुझे विश्वास नहीं होता तथा और ना ही वित्तीय स्थिति मंदिर बनवाने की है। संत रूप में आए कबीर देव ने कहा कि राजन अगर मंदिर बनवाने का मन करें तो मेरे पास आ जाना। मैं अमुक स्थान पर रहता हूं। अब के समुंदर मंदिर को नहीं तोड़ पाएगा यह कह कर प्रभु चले जाए


उसी रात्रि में प्रभु श्री कृष्ण जी ने फिर राजा इंद्र दमन को दर्शन दिए तथा कहा इंद्र दमन एक बार फिर महल बनवा दे जो तेरे पास संत आया था उससे संपर्क करके सहायता की याचना कर ले वह ऐसा वैसा संत नहीं है उसकी शक्ति का कोई वार् - पार नहीं है। राजा इंद्र दमन नींद से जागा स्वपन का पूरा वृतांत अपनी रानी को बताया। रानी ने कहा प्रभु कह रही है तो आप मत चूको। प्रभु का महल फिर से बनवा दो। रानी की सद्भावना युक्त वाणी सुनकर राजा ने कहा अब तो कोर्स भी खाली हो चुका है। यदि मंदिर नहीं मैं बनवाऊंगा, तो प्रभु प्रसन्न हो जाएंगे। मैं तो धर्मसंकट में फस गया हूं। रानी ने कहा आप मेरे गहने रखे हैं उनसे आसानी से मंदिर बन जाएगा। आप यह गहने लो तथा जो पहन रखे थे निकालकर कहते हुए रानी ने सर्व गहने जो घर पर रखे थे तथा जो पहन रखे थे निकालकर प्रभु के निमित्त अपने पति के चरणों में समर्पित कर दिया तथा राजा इंद्र दमन उसी स्थान पर गया जो परमेश्वर ने संत रूप में आकर बताया था।



कबीर प्रभु को खोज कर समुंदर को रोकने की प्रार्थना की। प्रभु कबीर जी ने कहा कि जिस तरफ से समुद्र उठकर आता है वहां समुंदर के किनारे एक चोरा बनवा दो। सुपर बैठकर मैं प्रभु की भक्ति  करूंगा तथा समुंद्र को रोकुंगा। राजा ने समुद्र के किनारे एक चोरा बनवा दिया तथा कबीर साहिब जी  उस पर बैठ गए। छठी बार मंदिर बनना प्रारंभ हुआ।
कबीर जी ने मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया समुंद्र भी मंदिर को गिराने के लिए उच्च वर्ग के साथ उठता था और ऐसा असहाय हो जाता था और रुक जाता था क्योंकि कबीर भगवान हाथ उठाते थे और अपनी शक्ति से समुंद्र को रोक देते थे। तब समुद्र ने कबीर जी से निवेदन किया की मैं आपके समक्ष शक्तिहीन हूं।मैं तुमसे जीत नहीं सकता लेकिन मैं अपना बदला कैसे लूं कृपया समाधान बताइए कभी भगवान ने कहा कि आप द्वारिका को अपने में विलीन कर लो और अपना क्रोध शांत करो क्योंकि द्वारिका खाली थी वह स्थान जहां कबीर जी ने समुद्र को रोका था वह स्मारक के रूप में एक गुम्बद आज भी मौजूद है। वर्तमान में एक के महंत वहां रहते हैं।
उसी दौरान नाथ उत्तराधिकारी का एक सिद्ध महात्मा आया और उसने राजा से कहा एक मूर्ति के बिना यह एक मंदिर कैसे होगा? चंदन से मूर्ति बनाकर मंदिर में स्थापित करो। राजा को 3 मूर्ति बनाने का आदेश दिया।   राजा सिद्ध महात्मा आदेश मानकर मूर्ति बनाने का कार्य शुरू किया तथा मूर्ति पूर्ण होने के बाद मूर्ति पूरी ट्रक टूट जाती थी राजा चितिंत तो गया। सुबह जब राजा अपने शाही दरबार में पहुंचे तब कबीर परमेश्वर एक शिल्पकार के रूप में आए और उन्होंने राजा से कहा कि मेरे पास 60 वर्षों का अनुभव है। मैं मूर्तियां बनाऊंगा और वह टूटेंगे नहीं।मुझे एक कमरा दो जिसमें मैं मूर्तियां बना लूंगा और जब तक मूर्ति नहीं बनती तब तक मैं अंदर ही रहूंगा और कोई दरवाजा नहीं भोलेनाथ चाहिए क्योंकि अगर बीच में ही दरवाजा खोला तो मूर्ति जितनी बनी है उतनी ही रह जाएगी राजा ने यह सुनकर कहा कि ऐसा ही होगा वहां कुछ दिनों के बाद नाथ जी फिर से आए, और उनसे पूछने पर राजा ने पूरी कहानी बताई। तब नाथ जी ने कहा शिल्पकार पिछले 10-12 दिनों से मूर्ति बना रहा है। ऐसा ना हो कि वह गलत तरीके से मूर्ति बना रहा है हमें मूर्तियों को देखना चाहिए यह सोच कर वह कमरे में दाखिल हुए फिर वहां पर कभी परमेश्वर नहीं थे वहां से भी गायब हो गई थी तीन मूर्तियां बनाई गई थी लेकिन बाधित होने कारण मूर्तियों के हाथों और पैरों के अंग नहीं बने थे इसलिए मूर्तियों को बिना अंग के मंदिर में रखा गया



कुछ समय पश्चात कुछ पंडित जगन्नाथ पुरी मंदिर में मूर्तियों का अभिषेक करने पहुंचे। मंदिर के दरवाजे के सामने मंदिर के सामने कभी भगवान खड़े थे अमन पंडित जी ने कभी परमात्मा को अछूत कहते हुए उन्हें धक्का दिया और मंदिर में प्रवेश किया।आवेश करने पर उन्होंने देखा कि सभी मूर्तियों में कबीर भगवान की उपस्थिति प्राप्त कर ली थी पंडित विश्व में में पड़ गया तथा बाद में पंडित ने कबीर भगवान को अछूत कह कर दिखा दिया जो कुष्ठ रोगी थे। लेकिन दयालु भगवान कबीर जी ने उसे ठीक कर दिया। उसके बाद जगन्नाथ पुरी मंदिर में कभी भी अछूत का अभ्यास नहीं किया गया।

ऐसे ही श्री जगन्नाथ जी का मंदिर अर्थात नाम स्थापित हुआ

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