एक सदन नाम का व्यक्ति एक कसाई के बुचड़खाने में नौकरी करता था।
गरीब, सो छल छिद्र मैं करूं, अपने जन के काज। हरणाकुश ज्यूं मार हूँ, नरसिंघ धरहूँ साज।।
संत गरीबदास जी ने बताया है कि परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि जो मेरी शरण
में किसी जन्म में आया है, मुक्त नहीं हो पाया, मैं उसको मुक्त करने के लिए कुछ भी लीला
कर देता हूँ। जैसे प्रहलाद भक्त की रक्षा के लिए नरसिंह रूप {मुख और हाथ शेर (स्पवद) के,
शेष शरीर नर यानि मनुष्य का} धारण करके हिरण्यकशिपु को मारा था। फिर कहा है कि :-
गरीब, जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास।
गैल-गैल लागा रहूँ, जब तक धरणी आकाश।।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है जो जन (व्यक्ति) किसी जन्म में मेरी शरण में आ गया
है। उसके मोक्ष के लिए उसके पीछे-पीछे फिरता रहता हूँ। जब तक धरती-आकाश रहेगा
(महाप्रलय तक), तब तक उसको काल जाल से निकालने की कोशिश करता रहूँ। फिर कहा
है कि :-
गरीब, ज्यूं बच्छा गऊ की नजर में, यूं सांई कूं संत।
भक्तों के पीछे फिरै, भक्त वच्छल भगवन्त।।
जैसे गाय अपने बच्चे (बछड़े-बछड़ी) पर अपनी दृष्टि रखती है। बच्चा भागता है तो
उसके पीछे-पीछे भागती है। अन्य पशुओं से उसकी रक्षा करती है। इसी प्रकार परमेश्वर
कबीर जी अपने भक्त के साथ रहता है। यदि वर्तमान जन्म में उस पूर्व जन्म के भक्त ने
दीक्षा नहीं ले रखी तो भी परमेश्वर जी उसके पूर्व जन्म के भक्ति कर्मों के पुण्य से उनके
लिए चमत्कार करके रक्षा करते हैं। उदाहरण = भैंस का सींग परमात्मा बना, द्रोपदी का
चीर बढ़ाना, प्रहलाद भक्ती की रक्षार्थ नरसिंह रूप धारण करना और इस कथा में सदन
भक्त के लिए लीला करने का वर्णन है।
शंका :- नए पाठकों को भ्रम होगा कि परमेश्वर समर्थ होता है। फिर भी लाचार
(विवश) कैसे है? एक ही जन्म में पार क्यों नहीं कर देता?
समाधान :- सब जीव अपनी गलती के कारण परमेश्वर की इच्छा के विरूद्ध अपनी
इच्छा से काल के साथ आए हैं। जिस समय परमेश्वर कबीर जी प्रथम बार हमारी सुध लेने
के लिए काल लोक में आए थे तो काल ने चरण पकड़कर कुछ शर्तें रखी थी जो परमेश्वर
कबीर जी ने मान ली थी :-
1ण् काल ब्रह्म ने कहा था कि हे प्रभु! आप कह रहे हो कि मैं जीवों को तेरे (काल ब्रह्म
के) जाल से निकालकर वापिस सतलोक लेकर जाऊँ। हे स्वामी! मेरे को सतपुरूष ने श्राप
दे रखा है कि एक लाख मानव शरीरधारी जीव खाने का तथा सवा लाख उत्पन्न करने का।
यदि सब जीव वापिस चले गए तो मेरी क्षुधा (भूख) कैसे समाप्त होगी? इसलिए आप
जोर-जबरदस्ती करके जीव न ले जाना। आप अपना ज्ञान समझाना। जो जीव आपके ज्ञानको स्वीकार करे, उसको ले जाना। जो न माने, वह मेरे लोक में रहे। परमेश्वर जी को ज्ञान
था कि जब तक इनको सत्यलोक के सुख का और काल लोक के दुःख का ज्ञान नहीं होगा
तो ये मेरा साथ देंगे ही नहीं। यदि जबरदस्ती (ठल थ्वतबम) ले जाऊँगा तो ये वहाँ रहेंगे ही
नहीं क्योंकि इनका मोह परिवार और सम्पत्ति में फँसा है। पहले इनको ज्ञान ही कराना होगा।
इसलिए परमेश्वर कबीर जी ने काल की शर्तों को स्वीकार किया था। अब काल ब्रह्म (ज्योति
निरंजन) ने पूरा जोर लगा रखा है कि सब मानव को काल जाल में फँसे रहने का ज्ञान
कराने के लिए अनेकों प्रचारक लगा रखे हैं जो केवल राम-कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी
तथा इनके अंतर्गत अन्य देवी-देवताओं-भैरो, भूत-पित्तरों, माई-मसानी, सेढ़-शीतला आदि-आदि
की महिमा का ज्ञान बताते रहते हैं। सतपुरूष (कबीर परमेश्वर जी) का नामो-निशान मिटा
रखा है। अपने पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) तथा अपनी महिमा का ज्ञान सब स्थानों पर फैला
रखा है। चारों वेद, गीता, पुराण, कुरान, बाईबल (जो तीन पुस्तकों जबूर, तौरात, इंजिल
का संग्रह है) का ज्ञान पूरी पृथ्वी पर प्रचलित कर रखा है। सब मानव इन्हीं तक सीमित
हो चुका है। इन पुस्तकों में पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का ज्ञान नहीं है। परमेश्वर कबीर जी
ने कहा है कि :-
कबीर, बेद मेरा भेद है, ना बेदन के मांही। जोन बेद से मैं मिलूँ, बेद जानत नांही।।
प्रमाण :- यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 10 में कहा है कि परमात्मा का यथार्थ ज्ञान
(धीराणाम्) तत्त्वदर्शी संत बताते हैं, उनसे (श्रुणूं) सुनो।
गीता शास्त्रा चारों वेदों का संक्षिप्त रूप है। इसमें भी कहा है कि परमात्मा तत्त्वज्ञान
यानि अपनी जानकारी तथा प्राप्ति का ज्ञान अपने मुख कमल से वाणी बोलकर बताता है।
उस ज्ञान से मोक्ष होगा। तथा सत्यलोक प्राप्ति होगी। उस ज्ञान को तत्त्वदर्शी संतों के पास
जाकर समझ।(गीता अध्याय 4 श्लोक 32ए 34 में)
कुरान शरीफ सूरत फुर्कानि 25 आयत नं. 52 से 59 में कहा है कि :-
जिस परमेश्वर ने छः दिन में सृष्टि रची। फिर तख्त पर जा विराजा।(जा बैठा) वह
अल्लाह कबीर है। उसकी जानकारी किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी संत) से पूछो।
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