Wednesday, May 6, 2020

‘‘भैंस का सींग भगवान बना’’

 एक पाली (भैंसों को खेतों में चराने वाला) अपनी भैंसों को घास चराता-चराता मंदिर
के आसपास चला गया। मंदिर में पंडित कथा कर रहा था। भगवान के मिलने के पश्चात्
होने वाले सुख बता रहा था कि जिसको भगवान मिल गया तो सब कार्य सुगम हो जाते हैं।
परमात्मा भक्त के सब कार्य कर देता है। भगवान भक्त को दुःखी नहीं होने देता। इसलिए
भगवान की खोज करनी चाहिए।
पाली भैंसों ने तंग कर रखा था। एक किसी ओर जाकर दूसरे की फसल में घुसकर
नुकसान कर देती, दूसरी भैंस किसी ओर। खेत के मालिक आकर पाली को पीटते थे।
कहते थे कि हमारी फसल को हानि करा दी। अपनी भैंसों को संभाल कर रखा कर। पाली
ने जब पंडित से सुना कि भगवान मिलने के पश्चात् सब कार्य आप करता है, भक्त मौज
करता है तो पंडित जी के निकट जाकर चरण पकड़कर कहा कि मुझे भगवान दे दो। मैं
भैंसों ने बहुत दुःखी कर रखा हूँ। पंडित जी ने पीछा छुड़ाने के उद्देश्य से कहा कि कल
आना। पाली गया तो पंडित ने पहले ही भैंस का टूटा हुआ सींग जो कूड़े में पड़ा था, उठाकर
उसके ऊपर लाल कपड़ा लपेटकर लाल धागे (नाले=मौली) से बाँधकर कहा कि ले, यह
भगवान है। इसकी पूजा करना, इसको पहले भोजन खिलाकर बाद में स्वयं खाना। कुछ
दिनों में तेरी भक्ति से प्रसन्न होकर यह भगवान मनुष्य की तरह बन जाएगा। तब तेरे सब
कार्य करेगा। यह तेरी सच्ची श्रद्धा पर निर्भर है कि तू कितनी आस्था से सच्ची लगन से
क्रिया करता है। यदि तेरी भक्ति में कमी रही तो भगवान मनुष्य के समान नहीं बनेगा।
पाली उस भैंस के सींग को ले गया। उसके सामने भोजन रखकर कहा कि खाओ
भगवान! भैंस का सींग कैसे भोजन खाता? पाली ने भी भोजन नहीं खाया। इस प्रकार
तीन-चार दिन बीत गए। पाली ने कहा कि मर जाऊँगा, परंतु आप से पहले भोजन नहीं
खाऊँगा। मेरी भक्ति में कमी रह गई तो आप मनुष्य नहीं बनोगे। मैं भैंसों ने बहुत दुःखी
कर रखा हूँ।परमात्मा तो जानीजान हैं। जानते थे कि यह भोला भक्त मृत्यु के निकट है। उस
पाखण्डी ने तो अपना पीछा छुड़ा लिया। मैं कैसे छुड़ाऊँ? चौथे दिन पाली के सामने उसी
भैंस के सींग का जवान मनुष्य बन गया। पाली ने बांहों में भर लिया और कहने लगा कि
भोजन खा, फिर मैं खाऊँगा। भगवान ने ऐसा ही किया। फिर अपने हाथों पाली को भोजन
डालकर दिया। पाली ने भोजन खाया। भगवान ने कहा कि मेरे को किसलिए लाया है? पाली
बोला कि भैंस चराने के लिए चल, भैंसों को खेत में खोल, यह लाठी ले। अब सारा कार्य
आपने करना है, मैं मौज करूँगा। परमात्मा ने लाठी थामी और सब भैंसों की अपने आप
रस्सी खुल गई और खेतों की ओर चल पड़ी। कोई भैंस किसी ओर जाने लगे तो लाठी वाला
उसी ओर खड़ा दिखाई देता। भैंसे घास के मैदान में भी घास चरने लगी। दूसरों की खेती
में कोई नुक्सान नहीं हो रहा था। पाली की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। वह अपने गुरू
जी पंडित जी का धन्यवाद करने मंदिर में गया। पंडित डर गया कि यह झगड़ा करेगा,
कहेगा कि अच्छा मूर्ख बनाया, परंतु बात विपरित हुई। पाली ने गुरू जी के चरण छूए तथा
कहा कि गुरू जी चौथे दिन आदमी रूप में भगवान बन गया। मैंने भी भोजन नहीं खाया,
प्राण निकलने वाले थे। उसी समय वह लाल वस्त्रा में बँधा भगवान जवान लड़का बन गया।
मेरी ही आयु के समान। अब सारा कार्य भगवान कर लेता है। मैं मौज करता हूँ। उसके
भोले-भाले अंदाज से बताई कथा सत्य लग रही थी, परंतु विश्वास नहीं हो रहा था। पंडित
जी ने कहा कि मुझे दिखा सकते हो, कहाँ है वह युवा भगवान। पाली बोला कि चलो मेरे
साथ। पंडित जी पाली के साथ भैंसों के पास गया। पूछा कि कहाँ है भगवान? पाली बोला
कि क्या दिखाई नहीं देता, देखो! वह खड़ा लाठी ठोडी के नीचे लगाए। पंडित जी को तो
केवल लाठी-लाठी ही दिखाई दे रही थी क्योंकि उसके कर्म लाठी खाने के ही थे। पाली से
कहा कि मुझे लाठी-लाठी ही दिखाई दे रही है। कभी इधर जा रही है, कभी उधर जा रही
है। तब पाली ने कहा कि भगवान इधर आओ। भगवान निकट आकर बोला, क्या आज्ञा है?
पंडित जी को आवाज तो सुनी, लाठी भी दिखी, परंतु भगवान नहीं दिखे। पाली बोला, आप
मेरे गुरू जी को दिखाई नहीं दे रहे हो, इन्हें भी दर्शन दो। भगवान ने कहा, ये पाखण्डी है।
यह केवल कथा-कथा सुनाता है, स्वयं को विश्वास नहीं। इसको दर्शन कैसे हो सकते हैं?
पंडित जी यह वाणी सुनकर लाठी के साथ पृथ्वी पर गिरकर क्षमा याचना करने लगा।
भगवान ने कहा, यह भोला बालक मर जाता तो तेरा क्या हाल होता? मैंने इसकी रक्षा की।
पाली के विशेष आग्रह से पंडित जी को भी विष्णु रूप में दर्शन दिए क्योंकि वह श्री विष्णु
जी का भक्त था। फिर अंतर्ध्यान हो गया।
प्रिय पाठकों से निवेदन है कि इस कथा का भावार्थ यह न समझना कि पाली की तरह
हठ योग करने से परमात्मा मिल जाता है। यदि कुछ देर दर्शन भी दे गए और कुछ जटिल
कार्य भी कर दिए। इससे जन्म-मरण का दीर्घ रोग तो समाप्त नहीं हुआ। वह तो पूर्ण गुरू
से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर आजीवन साधना करने से ही समाप्त होगा।

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