Sunday, May 31, 2020
चमत्कार
Saturday, May 30, 2020
सत भक्ति
Friday, May 29, 2020
कबीर परमात्मा प्रकट दिवस
Tuesday, May 19, 2020
बेरोजगारी
Wednesday, May 13, 2020
कन्या भ्रूण हत्या
कन्या भ्रूण हत्या किसे कहते हैं
कन्या भ्रूण हत्या, लड़कों को प्राथमिकता देने तथा कन्या जन्म से जुड़े निम्न मूल्य के कारण जान बूझकर की गई कन्या शिशु की हत्या होती है। ये प्रथाएं उन क्षेत्रों में होती हैं जहां सांस्कृतिक मूल्य लड़के को कन्या की तुलना में अधिक महत्व देते हैं।
कन्या भ्रूण हत्या के कुछ तत्य
- यूनीसेफ (UNICEF) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सुनियोजित लिंग-भेद के कारण भारत की जनसंख्या से लगभग 5 करोड़ लड़कियां एवं महिलाएं गायब हैं।
- विश्व के अधिकतर देशों में, प्रति 100 पुरुषों के पीछे लगभग 105 स्त्रियों का जन्म होता है।
- भारत की जनसंख्या में प्रति 100 पुरुषों के पीछे 93 से कम स्त्रियां हैं।
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में अवैध रूप से अनुमानित तौर पर प्रतिदिन 2,000 अजन्मी कन्याओं का गर्भपात किया जाता है।
- गर्भवती महिला को उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिंग के बारे में जानने के लिए उकसाना;
- गर्भवती महिला पर उसके परिजनों या अन्य व्यक्ति द्वारा लिंग जांचने के लिए दबाव बनाना;
- वे डॉक्टर जो इस तकनीक का दुरूपयोग करते हैं;
- कोई भी ऐसा व्यक्ति अपने घर या बाहर कहीं पर लिंग की जांच के लिए किसी तकनीक का प्रयोग या मशीन का प्रयोग करता है;
- लेबोरेटरी, अस्पताल, क्लीनिक तथा कोई भी ऐसी संस्था जो सोनोग्राफी जैसी तकनीक का दुरुपयोग लिंग चयन के लिए करते हैं
सरकार के द्वारा बनाए गए नियम
भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत प्रावधान : भारतीय दंड संहिता की धारा 312 कहती है: ‘जो कोई भी जानबूझकर किसी महिला का गर्भपात करता है जब तक कि कोई इसे सदिच्छा से नहीं करता है और गर्भावस्था का जारी रहना महिला के जीवन के लिए खतरनाक न हो, उसे सात साल की कैद की सजा दी जाएगी’। इसके अतिरिक्त महिला की सहमति के बिना गर्भपात (धारा 313) और गर्भपात की कोशिश के कारण महिला की मृत्यु (धारा 314) इसे एक दंडनीय अपराध बनाता है। धारा 315 के अनुसार मां के जीवन की रक्षा के प्रयास को छोड़कर अगर कोई बच्चे के जन्म से पहले ऐसा काम करता है जिससे जीवित बच्चे के जन्म को रोका जा सके या पैदा होने का बाद उसकी मृत्यु हो जाए, उसे दस साल की कैद होगी धारा 312 से 318 गर्भपात के अपराध पर सरलता से विचार करती है जिसमें गर्भपात करना, बच्चे के जन्म को रोकना, अजन्मे बच्चे की हत्या करना (धारा 316), नवजात शिशु को त्याग देना (धारा 317), बच्चे के मृत शरीर को छुपाना या इसे चुपचाप नष्ट करना (धारा 318)। हालाँकि भ्रूण हत्या या शिशु हत्या शब्दों का विशेष तौर पर इस्तेमाल नहीं किया गया है , फिर भी ये धाराएं दोनों अपराधों को समाहित करती हैं।
संत रामपाल जी महाराज के द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए किए गए प्रयास
संत रामपाल जी महाराज दहेज प्रथा तथा कन्या भ्रण हत्या को जड़ से खत्म कर रहे हैं तथा समाज में लड़कियों का सम्मान भी लड़कों के तुल्ले होगा ऐसा संत रामपाल जी महाराज अपने अनुयायियों को शिक्षा देते हैं और उन्हें दहेज प्रथा तथा कन्या भ्रूण हत्या को समाप्त करने को कहां है जो कोई भी इस का पालन नहीं करेगा वह इस संसार में दुखी होगा कथा उसका आगे का जीवन भी कष्टदायक होगा संत रामपाल जी महाराज बताते हैं की लड़का हो या लड़की दोनों को समान दृष्टि से देखना चाहिए परमात्मा के दृष्टि में दोनों समान है तो फिर हम उनको अलग अलग कैसे कर सकते हैं यह हमारी सोच है की हम उन्हें अलग अलग समझते हैं
Tuesday, May 12, 2020
बेरोजगारी
‘बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो कि बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम तो करना चाहता है लेकिन उसे काम नही मिल पा रहा है.’
बेरोजगारी की परिभाषा हर देश में अलग अलग होती है. जैसे अमेरिका में यदि किसी व्यक्ति को उसकी क्वालिफिकेशन के हिसाब से नौकरी नही मिलती है तो उसे बेरोजगार माना जाता है.
बेरोजगारी एक गंभीर समस्या है। इसके परिणाम बड़े ही घातक है। इसका दूर होना व्यक्ति और समाज दोनों के हित में है .
इसे संगठित एवं योजनाबद्ध रूप में ही दूर किया जा सकता है सिर्फ सरकारी प्रयास से ही यह संभव नहीं है। बेरोजगारी निवारण में व्यक्ति, समाज और सरकार तीनों संयुक्त सच्चे प्रयास की जरुरत है
बेरोजगारी को दुर करने के लिए संत रामपाल जी महाराज का योगदान
. हमारे देश में बेरोजगारी के बढ़ने के कई कारण हैं जिनमें से एक है भ्रष्टाचार जिसके अंतर्गत योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिलता तथा योग्यता होते हुए भी उसे अपनी योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिल पाता इसका एक ही कारण है कि बढ़ते हुए भ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोरी के कारण उन लोगों को योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिल पा रहा है लेकिन संत रामपाल जी महाराज ने एक बीड़ा उठाया है की हमारा देश भ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोर मुक्त हो इसके चलते उन्होंने अपने शिष्यों को भ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोरी फैलाने पर सख्त पाबंदी लगा रखी है तथा जिससे योग्यता के अनुसार लोगों को रोजगार मिल सके तथा वह अपना जीवन आसानी से बिता सकें
Thursday, May 7, 2020
‘‘पवित्रा श्रीमद्भगवत गीता जी में सृष्टि रचना का प्रमाण‘‘
”पवित्रा बाईबल तथा पवित्रा कुरान शरीफ में सृष्टि रचना का प्रमाण“
Wednesday, May 6, 2020
‘‘सदन कसाई का उद्धार’’
‘‘भैंस का सींग भगवान बना’’
के आसपास चला गया। मंदिर में पंडित कथा कर रहा था। भगवान के मिलने के पश्चात्
होने वाले सुख बता रहा था कि जिसको भगवान मिल गया तो सब कार्य सुगम हो जाते हैं।
परमात्मा भक्त के सब कार्य कर देता है। भगवान भक्त को दुःखी नहीं होने देता। इसलिए
भगवान की खोज करनी चाहिए।
पाली भैंसों ने तंग कर रखा था। एक किसी ओर जाकर दूसरे की फसल में घुसकर
नुकसान कर देती, दूसरी भैंस किसी ओर। खेत के मालिक आकर पाली को पीटते थे।
कहते थे कि हमारी फसल को हानि करा दी। अपनी भैंसों को संभाल कर रखा कर। पाली
ने जब पंडित से सुना कि भगवान मिलने के पश्चात् सब कार्य आप करता है, भक्त मौज
करता है तो पंडित जी के निकट जाकर चरण पकड़कर कहा कि मुझे भगवान दे दो। मैं
भैंसों ने बहुत दुःखी कर रखा हूँ। पंडित जी ने पीछा छुड़ाने के उद्देश्य से कहा कि कल
आना। पाली गया तो पंडित ने पहले ही भैंस का टूटा हुआ सींग जो कूड़े में पड़ा था, उठाकर
उसके ऊपर लाल कपड़ा लपेटकर लाल धागे (नाले=मौली) से बाँधकर कहा कि ले, यह
भगवान है। इसकी पूजा करना, इसको पहले भोजन खिलाकर बाद में स्वयं खाना। कुछ
दिनों में तेरी भक्ति से प्रसन्न होकर यह भगवान मनुष्य की तरह बन जाएगा। तब तेरे सब
कार्य करेगा। यह तेरी सच्ची श्रद्धा पर निर्भर है कि तू कितनी आस्था से सच्ची लगन से
क्रिया करता है। यदि तेरी भक्ति में कमी रही तो भगवान मनुष्य के समान नहीं बनेगा।
पाली उस भैंस के सींग को ले गया। उसके सामने भोजन रखकर कहा कि खाओ
भगवान! भैंस का सींग कैसे भोजन खाता? पाली ने भी भोजन नहीं खाया। इस प्रकार
तीन-चार दिन बीत गए। पाली ने कहा कि मर जाऊँगा, परंतु आप से पहले भोजन नहीं
खाऊँगा। मेरी भक्ति में कमी रह गई तो आप मनुष्य नहीं बनोगे। मैं भैंसों ने बहुत दुःखी
कर रखा हूँ।परमात्मा तो जानीजान हैं। जानते थे कि यह भोला भक्त मृत्यु के निकट है। उस
पाखण्डी ने तो अपना पीछा छुड़ा लिया। मैं कैसे छुड़ाऊँ? चौथे दिन पाली के सामने उसी
भैंस के सींग का जवान मनुष्य बन गया। पाली ने बांहों में भर लिया और कहने लगा कि
भोजन खा, फिर मैं खाऊँगा। भगवान ने ऐसा ही किया। फिर अपने हाथों पाली को भोजन
डालकर दिया। पाली ने भोजन खाया। भगवान ने कहा कि मेरे को किसलिए लाया है? पाली
बोला कि भैंस चराने के लिए चल, भैंसों को खेत में खोल, यह लाठी ले। अब सारा कार्य
आपने करना है, मैं मौज करूँगा। परमात्मा ने लाठी थामी और सब भैंसों की अपने आप
रस्सी खुल गई और खेतों की ओर चल पड़ी। कोई भैंस किसी ओर जाने लगे तो लाठी वाला
उसी ओर खड़ा दिखाई देता। भैंसे घास के मैदान में भी घास चरने लगी। दूसरों की खेती
में कोई नुक्सान नहीं हो रहा था। पाली की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। वह अपने गुरू
जी पंडित जी का धन्यवाद करने मंदिर में गया। पंडित डर गया कि यह झगड़ा करेगा,
कहेगा कि अच्छा मूर्ख बनाया, परंतु बात विपरित हुई। पाली ने गुरू जी के चरण छूए तथा
कहा कि गुरू जी चौथे दिन आदमी रूप में भगवान बन गया। मैंने भी भोजन नहीं खाया,
प्राण निकलने वाले थे। उसी समय वह लाल वस्त्रा में बँधा भगवान जवान लड़का बन गया।
मेरी ही आयु के समान। अब सारा कार्य भगवान कर लेता है। मैं मौज करता हूँ। उसके
भोले-भाले अंदाज से बताई कथा सत्य लग रही थी, परंतु विश्वास नहीं हो रहा था। पंडित
जी ने कहा कि मुझे दिखा सकते हो, कहाँ है वह युवा भगवान। पाली बोला कि चलो मेरे
साथ। पंडित जी पाली के साथ भैंसों के पास गया। पूछा कि कहाँ है भगवान? पाली बोला
कि क्या दिखाई नहीं देता, देखो! वह खड़ा लाठी ठोडी के नीचे लगाए। पंडित जी को तो
केवल लाठी-लाठी ही दिखाई दे रही थी क्योंकि उसके कर्म लाठी खाने के ही थे। पाली से
कहा कि मुझे लाठी-लाठी ही दिखाई दे रही है। कभी इधर जा रही है, कभी उधर जा रही
है। तब पाली ने कहा कि भगवान इधर आओ। भगवान निकट आकर बोला, क्या आज्ञा है?
पंडित जी को आवाज तो सुनी, लाठी भी दिखी, परंतु भगवान नहीं दिखे। पाली बोला, आप
मेरे गुरू जी को दिखाई नहीं दे रहे हो, इन्हें भी दर्शन दो। भगवान ने कहा, ये पाखण्डी है।
यह केवल कथा-कथा सुनाता है, स्वयं को विश्वास नहीं। इसको दर्शन कैसे हो सकते हैं?
पंडित जी यह वाणी सुनकर लाठी के साथ पृथ्वी पर गिरकर क्षमा याचना करने लगा।
भगवान ने कहा, यह भोला बालक मर जाता तो तेरा क्या हाल होता? मैंने इसकी रक्षा की।
पाली के विशेष आग्रह से पंडित जी को भी विष्णु रूप में दर्शन दिए क्योंकि वह श्री विष्णु
जी का भक्त था। फिर अंतर्ध्यान हो गया।
प्रिय पाठकों से निवेदन है कि इस कथा का भावार्थ यह न समझना कि पाली की तरह
हठ योग करने से परमात्मा मिल जाता है। यदि कुछ देर दर्शन भी दे गए और कुछ जटिल
कार्य भी कर दिए। इससे जन्म-मरण का दीर्घ रोग तो समाप्त नहीं हुआ। वह तो पूर्ण गुरू
से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर आजीवन साधना करने से ही समाप्त होगा।
Tuesday, May 5, 2020
’’सुमिरन के अंग का सरलार्थ‘‘
जानता। जिसको गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में परम अक्षर ब्रह्म कहा है तथा अध्याय 8 के
ही श्लोक 8ए 9ए 10 में परम दिव्य पुरूष तथा श्लोक 20 से 22 में अविनाशी अव्यक्त कहा
है। गीता अध्याय 18 श्लोक 61.62ए 66 में गीता ज्ञान दाता ने जिस परमेश्वर की शरण में
जाने के लिए कहा है, उसी को संत गरीबदास जी ने अविगत राम कहा है।
राम की परिभाषा :- राम कहो, प्रभु, स्वामी, अल्लाह, भगवान, ईश, परमात्मा या साहब
(साहिब) कहो। ये परमात्मा का बोध कराने वाले नाम हैं।
उदाहरण के लिए :- जैसे तहसीलदार साहब अपने कार्य क्षेत्रा का स्वामी है, मालिक
है, प्रभु है।
उपायुक्त साहब :- यह अपने जिले में साहब, स्वामी, प्रभु, मालिक है।
आयुक्त साहब :- यह कई जिलों का साहब, स्वामी, प्रभु, मालिक है।
प्रान्त का मंत्रा भी साहब है, स्वामी, प्रभु है। मुख्यमंत्रा भी साहब (राम, प्रभु, स्वामी)
है। केन्द्र सरकार का मंत्रा भी साहब (राम, प्रभु, स्वामी) है।
देश के प्रधानमंत्रा जी भी साहब (राम, प्रभु, स्वामी) हैं।
देश के राष्ट्रपति जी भी साहब (स्वामी, राम, प्रभु)र्हिं।
परंतु इन सबकी अपनी-अपनी सीमाएँ हैं। अपने-अपने कार्यक्षेत्रा के सब ही प्रभु हैं,
परंतु वास्तव में समर्थ शक्ति राष्ट्रपति जी हैं। उनके पश्चात् प्रधानमंत्रा जी समर्थ शक्ति हैं।
पूर्ण साहब हैं।
इस सुमरण के अंग में वाणी नं. 15.16 में कहा है कि मूल कमल में राम है यानि गणेश
जी हैं। यह भी स्वामी हैं। राम हैं यानि देव हैं। (स्वाद कमल में राम) ब्रह्मा-सावित्रा भी प्रभु
हैं। (नाभि कमल में राम) विष्णु-लक्ष्मी भी प्रभु हैं। (हृदय कमल विश्राम) हृदय कमल में
शिव-पार्वती भी प्रभु (राम) हैं।(15)
(कण्ठ कमल में राम है) देवी दुर्गा भी राम है, मालिक-स्वामी है। (त्रिकुटी कमल में
राम) सतगुरू रूप में परमेश्वर त्रिकुटी में विराजमान हैं। वे उस स्थान पर सतगुरू रूप में
अपने कार्य के स्वामी (राम-प्रभु) हैं। (संहस कमल दल राम है) काल-निरंजन भी अपने 21
ब्रह्माण्डों का राम (स्वामी-प्रभु) है जो संहस्र कमल दल में अव्यक्त रूप में बैठा है। (सुनि
बस्ती सब ठाम) सब स्थानों (लोकों) पर जिसकी सत्ता है, वह सतपुरूष भी राम (स्वामी, प्रभु)
है। वाणी नं. 17 में कहा है कि वास्तव में समर्थ राम है :-
अचल अभंगी राम है, गलताना दम लीन। सुरति निरति के अंतरे बाजै अनहद बीन।।
अचल (स्थाई) अभंगी (अविनाशी) जो कभी भंग यानि नष्ट नहीं होता, वह समर्थ राम है।
सुमरण का अर्थ है परमात्मा के सत मंत्रा का जाप करना। जैसे कबीर परमेश्वर जी ने
कहा है कि :-
सारशब्द का सुमरण करहीं, सो हंसा भवसागर तरहीं।
सुमरण का बल ऐसा भाई। कालही जीत लोक ले जाई।।
नाम सुमरले सुकर्म करले कौन जाने कल की, खबर नहीं पल की।
श्वांस-उश्वांस में नाम जपो, बिरथा श्वांस न खोय। ना बेरा इस श्वांस का, आवन हो के ना होय।।
कहता हूँ कही जात हूँ, सुनता है सब कोय। सुमरण से भला होयेगा, नातर भला ना होय।।
सुमरण मार्ग सहज का, सतगुरू दिया बताय। श्वांस-उश्वांस जो सुमरता, एक दिन मिलसी आय।।
राग आसावरी से शब्द नं. 63ए66 तथा 75 :-
नर सुनि रे मूढ गंवारा। राम भजन ततसारा।।टेक।। राम भजन बिन बैल बनैगा, शूकर श्वान
शरीरं। कउवा खर की देह धरैगा, मिटै न याह तकसीरं।।1।। कीट पतंग भवंग होत हैं, गीदड़
जंबक जूंनी। बिना भजन जड़ बिरछ कीजिये, पद बिन काया सूंनी।।2।। भक्ति बिना नर खर एकै
हैं, जिनि हरि पद नहीं जान्या। पारब्रह्म की परख नहीं रे, पूजि मूये पाषानां।।3।। थावर जंगम में
जगदीशं, व्यापक पूरन ब्रह्म बिनांनी। निरालंब न्यारा नहीं दरसै, भुगतैं चार्यौं खांनी।।4।। तोल न
मोल उजन नहीं आवै, असथरि आनंद रूपं। घटमठ महतत सेती न्यारा, सोहं सति सरूपं।।5।।
बादल छांह ओस का पानी, तेरा यौह उनमाना। हाटि पटण क्रितम सब झूठा, रिंचक सुख
लिपटांना।।6।। नराकार निरभै निरबांनी, सुरति निरति निरतावै। आत्मराम अतीत पुरुष कूं,
गरीबदास यौं पावै।।7।।।63।। भजन करौ उस रब का, जो दाता है कुल सब का।।टेक।।
बिनां भजन भै मिटै न जम का, समझि बूझि रे भाई। सतगुरु नाम दान जिनि दीन्हा, याह संतौं
ठहराई।।1।। सतकबीर नाम कर्ता का, कलप करै दिल देवा। सुमरन करै सुरति सै लापै, पावै हरि
पद भेवा।।2।। आसन बंध पवन पद परचै, नाभी नाम जगावै। त्रिकुटी कमल में पदम झलकै, जा सें
ध्यान लगावै।।3।। सब सुख भुक्ता जीवत मुक्ता, दुःख दालिद्र दूरी। ज्ञान ध्यान गलतांन हरी पद,
ज्यौं कुरंग कसतूरी।।4।। गज मोती हसती कै मसतगि, उनमन रहै दिवानां। खाय न पीवै मंगल
घूमें, आठ बखत गलतानां।।5।। ऐसैं तत पद के अधिकारी, पलक अलख सें जोरैं। तन मन धन
सब अरपन करहीं, नेक न माथा मोरैं।।6।। बिनहीं रसना नाम चलत है, निरबांनी सें नेहा।
गरीबदास भोडल में दीपक, छांनि नहीं सनेहा।।7।।66।। भक्ति मुक्ति के दाता सतगुरु। भक्ति
मुक्ति के दाता।। टेक।। पिण्ड प्रांन जिन्हि दान दिये हैं, जल सें सिरजे गाता। उस दरगह कूं भूलि
गया है, कुल कुटंब सें राता।।1।। रिधि सिधि कोटि तुरंगम दीन्हें, ऐसा धनी बिधाता। उस समरथ
की रीझ छिपाई, जग से जोर्या नाता।।2।। मुसकल सें आसान किया था, कहां गई वै बाता। सत
सुकृत कूं भूलि गया है, ऊंचा किया न हाथा।।3।। सहंस इकीसौं खंड होत हैं, ज्यौं तरुवर कैं
पाता। थूंनी डिगी थाह कहाँ पावै, यौह मंदर ढह जाता।।4।। इस देही कूं देवा लोचैं, तूं नरक्यौं
उकलाता। नर देही नारायन येही, सनक सनन्दन साथा।।5।। ब्रह्म महूरति सूरति नगरी, शुन्य
सरोवर न्हाता। या परबी का पार नहीं रे, सकल कर्म कटि जाता।।6।। सुरति निरति मन पवन बंद
करि, मेरदण्ड चढि जाता। सहंस कमल दल फूलि रहै है, अमी महारस खाता।।7।। जहां अलख
निरंजन जोगी बैठ्या, जा सें रह्मा न भाता। गरीबदास पारंग प्रान है, संख कमल खिलि
जाता।।8।।75।।