Sunday, May 31, 2020

चमत्कार

            


             "भैंसे से वेद मन्त्र बुलवाना"

       परमात्मा कैसे कैसे चमत्कार करते हैं
जो अपने आप को विद्वान और ज्ञानी समझता है परमात्मा उसे उसके अहंकार से परिचित कराकर उसे अपनी गलती का एहसास कराते हैं ऐसी ही एक सच्ची घटना है जब कबीर परमेश्वर कलयुग में आए थे

एक समय तोताद्रि नामक स्थान पर सत्संग था। सत्संग के पश्चात भण्डारा शुरू हुआ। भंडारे में भोजन करने वाले व्यक्ति को वेद के चार मन्त्र बोलने पर प्रवेश मिल रहा था। कबीर साहेब की बारी आई तब थोड़ी सी दूरी पर घास चरते हुए भैंसे को हुर्रर हुर्रर करते हुए बुलाया। तब कबीर जी ने भैंसे की कमर पर थपकी लगाई और कहा कि भैंसे इन पंडितों को वेद के चार मन्त्र सुना दे। भैंसे ने छः मन्त्र सुना दिए।

Saturday, May 30, 2020

सत भक्ति

सत भक्ति  क्यों करनी चाहिए

सत भक्ति किसे कहते हैं सत भक्ति से तात्पर्य है कि हमारे सभी पवित्र सद ग्रंथों के अनुसार बताई गई भक्ति को सत भक्ति कहते हैं जो मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य है मानव जीवन इसीलिए मिला है लेकिन आज मानव इसे ना करें केवल अपना सारा समय धन उपार्जन में लगा रहा है जिसका कोई मूल्य नहीं है क्योंकि कवि साहब जी ने कहा है कि

" धनवता सोए जानिए राम नाम धन होय"
मानव जीवन में सत भक्ति से रहित हो जाता है क्योंकि सत भक्ति करने वाले की परमात्मा हमेशा मदद करता है तथा उसके रुके हुए काम को आसानी से करवा देता है क्योंकि परमात्मा उसी को ही  कहते हैं जिसके आगे कुछ भी असंभव नहीं हो अगर परमात्मा ऐसा नहीं करता है तो इससे सिद्ध होता है कि वो परमात्मा नहीं है कबीर साहब जी ने कहा है कि 

"यह सुंदर शरीर किस काम का जहां मुख नाही नाम जिव्हा तो वाहे बलि जो रटे हरि नाम" 
सत भक्ति के लिए पहली कड़ी सतगुरु होता है जिसके बारे में हमारे शास्त्र प्रमाण देते हैं कि  उस  सतगुरु के द्वारा बताई गई भक्ति करनी चाहिए तथा जो जो भक्ति साधना हमारे सभी पवित्र सत ग्रंथों में प्रमाण हो इसके लिए हमें अपने सत ग्रंथों का ज्ञान होना जरूरी है क्योंकि बिना सत ग्रंथों के हम सतगुरु की पहचान नहीं कर सकते जैसे पवित्र हिंदू धर्म में गीता अध्याय नंबर 15 श्लोक नंबर 1 से 4 में वर्णन है कि


इसी प्रकार पवित्र धर्मों में यह बताया गया है की सच्चे गुरुद्वारा बताए गए भक्ति से ही पूर्ण लाभ होता है वह किसी भी धर्म में आपको मिल जाए वहां से आप सत भक्ति प्राप्त कर मर्यादा में रहकर भक्ति करें आज पूरे विश्व में संत रामपाल जी महाराज ही सतगुरु हैं क्योंकि उन्हीं के पास हमारे सभी पवित्र धर्मों के सभी पवित्र सत ग्रंथों को का ज्ञान है उन्होंने कहा है कि 

"जीव हमारी जाति है मानव धर्म हमारा हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई धर्म नहीं कोई न्यारा"

Friday, May 29, 2020

कबीर परमात्मा प्रकट दिवस

क्या आप जानते हैं की कबीर साहिब जी का प्रकट दिवस ही क्यों मनाते हैं जयंती क्यों नहीं 


इसका एक कारण है क्योंकि कबीर जी का जन्म नहीं हुआ वह से शरीर प्रकट हुए थे इस कारण उनका प्रकट दिवस मनाया जाता है अपने शास्त्रों में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है तथा उस समय उनकी परवरिश कुंवारी गाय के दूध से होती है जिस कारण उनकी जयंती  न मना कर प्रकट दिवस मनाया जाता है 

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है उस समय कंवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।

Tuesday, May 19, 2020

बेरोजगारी

बेरोजगारी किसे कहते हैं
बेरोजगारी उसे कहते हैं जिसमें व्यक्ति को अपनी योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिल पाता है तथा जहां पर काम कम तथा काम करने वालो की संख्या अधिक होती है इस क्षेत्र को बेरोजगार कहते हैं जिसके अंतर्गत व्यक्ति को आपने योग्यता के अनुसार रोजगार उपलब्ध नहीं होता है यही कारण है हमारी देश की गरीबी का क्योंकि योग्यता रखने वालों के पास उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिल पाता है तथा जहां पर दो व्यक्तियों का कार्य होता है वहां पर चार व्यक्ति काम करने लग जाते हैं
 सरकार द्वारा उठाए गए कदम
सरकार ने बेरोजगार के लिए रोजगार देने का वादा किया है तथा बेरोजगारों को उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार देने की कोशिश कर रही है जिससे हमारे देश की आर्थिक स्थिति सही हो जाएगी तथा हमारे देश में गरीबी भी कम हो जाएगी 
भारत सरकार ने ग्रामीण विकास एवं सामुदायिक कल्याण की दृष्टि से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम फरवरी 2006 में लागू किया इस योजना का संक्षिप्त नाम नरेगा रखा गया जिसमें अक्टूबर 2009 से महात्मा गांधी का नाम  जोड़ा गया इसका संक्षिप्त नाम मनरेगा पड़ा विश्व रोजगार गारंटी योजना में अकुशल व्यस्क के स्त्री या पुरुष को श्रम युक्त रोजगार दिया जाता है परंतु रोजगार न देने पर बेरोजगार भत्ता देने का प्रावधान है

संत रामपाल जी महाराज द्वारा किए गए कार्य
बेरोजगार का इतना बढ़ना इसके कई कारण हैं बेरोजगार बढ़ने का एक कारण यह है कि देश में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की घटना बढ़ रही है जिसके कारण व्यक्ति को अपनी योग्यता के कारण रोजगार नहीं मिल पा रहा है व्यक्ति के पास योग्यता तो पूर्ण है लेकिन जब उनसे भ्रष्टाचारी तथा जिसका रिश्वतखोरी की बात की जाती है तो वहां पर अपनी योग्यता को भूल जाते हैं तथा उस रोजगार की तरफ न जाकर अपने आसपास ही कुछ छोटे-मोटे काम करने लग जाते हैं जिसके कारण आज हमारे देश में बेरोजगारी का कहर छाया है अगर हमें बेरोजगारी को खत्म करना है तो पहले हमें भ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोरी को समाप्त करना चाहिए अगर भ्रष्टाचारी तथा रिश्वतखोरी नहीं होगी तो व्यक्ति को अपनी योग्यता के अनुसार रोजगार मिल सकता है लेकिन आज पूरे देश में सभी भ्रष्टाचारी हो गए हैं लेकिन उनमें कुछ ईमानदार भी हैं संत रामपाल जी महाराज ने अपने अनुयायियों को यह जानकारी दी है की भ्रष्टाचारी और रिश्वतखोरी यह बहुत बुरा काम है जिससे व्यक्ति को बहुत बुरी सजा मिलती है 

Wednesday, May 13, 2020

कन्या भ्रूण हत्या

कन्या भ्रूण हत्या किसे कहते हैं      

कन्या भ्रूण हत्या, लड़कों को प्राथमिकता देने तथा कन्या जन्म से जुड़े निम्न मूल्य के कारण जान बूझकर की गई कन्या शिशु की हत्या होती है। ये प्रथाएं उन क्षेत्रों में होती हैं जहां सांस्कृतिक मूल्य लड़के को कन्या की तुलना में अधिक महत्व देते हैं।


कन्या भ्रूण हत्या के कुछ तत्य

  • यूनीसेफ (UNICEF) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सुनियोजित लिंग-भेद के कारण भारत की जनसंख्या से लगभग 5 करोड़ लड़कियां एवं महिलाएं गायब हैं।
  • विश्व के अधिकतर देशों में, प्रति 100 पुरुषों के पीछेWomen Foeticide लगभग 105 स्त्रियों का जन्म होता है।
  • भारत की जनसंख्या में प्रति 100 पुरुषों के पीछे 93 से कम स्त्रियां हैं।

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में अवैध रूप से अनुमानित तौर पर प्रतिदिन 2,000 अजन्मी कन्याओं का गर्भपात किया जाता है।

कन्या भ्रूण हत्या होने के कारण
  • गर्भवती महिला को उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिंग के बारे में जानने के लिए उकसाना;
  • गर्भवती महिला पर उसके परिजनों या अन्य व्यक्ति द्वारा लिंग जांचने के लिए दबाव बनाना;
  • वे डॉक्टर जो इस तकनीक का दुरूपयोग करते हैं;
  • कोई भी ऐसा व्यक्ति अपने घर या बाहर कहीं पर लिंग की जांच के लिए किसी तकनीक का प्रयोग या मशीन का प्रयोग करता है;
  • लेबोरेटरी, अस्पताल, क्लीनिक तथा कोई भी ऐसी संस्था जो सोनोग्राफी जैसी तकनीक का दुरुपयोग लिंग चयन के लिए करते हैं

इन सब का मूल कारण दहेज प्रथा है जिसके कारण उपरोक्त दी गई जानकारी द्वारा लोग लिंग का परीक्षण करते है कथा लिंग परीक्षण हो जाने के बाद अगर लड़का हुआ तो   भुर्ण  को नष्ट नहीं किया जाएगा लेकिन अगर लड़कि हो गई  तो उसे भुर्ण के अंदर ही नष्ट कर दिया जाता है सरकार के नियम बनाने के बाद भी इस प्रथा को खत्म नहीं किया जा रहा इसमें सरकार के नियमों का पालन नहीं हो पा रहा है

सरकार के द्वारा बनाए गए नियम

भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत प्रावधान : भारतीय दंड संहिता की धारा 312 कहती है: ‘जो कोई भी जानबूझकर किसी महिला का गर्भपात करता है जब तक कि कोई इसे सदिच्छा से नहीं करता है और गर्भावस्था का जारी रहना महिला के जीवन के लिए खतरनाक न हो, उसे सात साल की कैद की सजा दी जाएगी’। इसके अतिरिक्त महिला की सहमति के बिना गर्भपात (धारा 313) और गर्भपात की कोशिश के कारण महिला की मृत्यु (धारा 314) इसे एक दंडनीय अपराध बनाता है। धारा 315 के अनुसार मां के जीवन की रक्षा के प्रयास को छोड़कर अगर कोई बच्चे के जन्म से पहले ऐसा काम करता है जिससे जीवित बच्चे के जन्म को रोका जा सके या पैदा होने का बाद उसकी मृत्यु हो जाए, उसे दस साल की कैद होगी  धारा 312 से 318  गर्भपात के अपराध पर सरलता से विचार करती है जिसमें गर्भपात करना, बच्चे के जन्म को रोकना, अजन्मे बच्चे की हत्या करना (धारा 316), नवजात शिशु को त्याग देना (धारा 317), बच्चे के मृत शरीर को छुपाना या इसे चुपचाप नष्ट करना (धारा 318)। हालाँकि भ्रूण हत्या या शिशु हत्या शब्दों का विशेष तौर पर इस्तेमाल नहीं किया गया है , फिर भी ये धाराएं दोनों अपराधों को समाहित करती हैं। 


संत रामपाल जी महाराज के द्वारा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए किए गए प्रयास

संत रामपाल जी महाराज दहेज प्रथा तथा कन्या भ्रण हत्या को जड़ से खत्म कर रहे हैं तथा

समाज में लड़कियों का सम्मान भी लड़कों के तुल्ले होगा ऐसा संत रामपाल जी महाराज अपने अनुयायियों को शिक्षा देते हैं और उन्हें दहेज प्रथा तथा कन्या भ्रूण हत्या को समाप्त करने को कहां है जो कोई भी इस का पालन नहीं करेगा वह इस संसार में दुखी होगा कथा उसका आगे का जीवन भी कष्टदायक होगा संत रामपाल जी महाराज बताते हैं की लड़का हो या लड़की दोनों को समान दृष्टि से देखना चाहिए परमात्मा के दृष्टि में दोनों समान है तो फिर हम उनको अलग अलग कैसे कर सकते हैं यह हमारी सोच है की हम उन्हें अलग अलग समझते हैं


Tuesday, May 12, 2020

बेरोजगारी

बेरोजगार किसे कहते हैं
‘बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो कि बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम तो करना चाहता है लेकिन उसे काम नही मिल पा रहा है.’
बेरोजगारी की परिभाषा हर देश में अलग अलग होती है. जैसे अमेरिका में यदि किसी व्यक्ति को उसकी क्वालिफिकेशन के हिसाब से नौकरी नही मिलती है तो उसे बेरोजगार माना जाता है.

बेरोजगारी एक गंभीर समस्या है। इसके परिणाम बड़े ही घातक है। इसका दूर होना व्यक्ति और समाज दोनों के हित में है .

इसे संगठित एवं योजनाबद्ध रूप में ही दूर किया जा सकता है सिर्फ सरकारी प्रयास से ही यह संभव नहीं है। बेरोजगारी निवारण में व्यक्ति, समाज और सरकार तीनों  संयुक्त सच्चे प्रयास की जरुरत है 

बेरोजगारी को दुर करने के लिए संत रामपाल जी महाराज का योगदान

. हमारे देश में बेरोजगारी के बढ़ने के कई कारण हैं जिनमें से एक है भ्रष्टाचार जिसके अंतर्गत योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिलता तथा योग्यता होते हुए भी उसे अपनी योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिल पाता इसका एक ही कारण है कि बढ़ते हुए भ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोरी के कारण उन लोगों को योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिल पा रहा है लेकिन संत रामपाल जी महाराज ने एक बीड़ा उठाया है की हमारा देश भ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोर मुक्त हो इसके चलते उन्होंने अपने शिष्यों को भ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोरी फैलाने पर सख्त पाबंदी लगा रखी है तथा जिससे योग्यता के अनुसार लोगों को रोजगार मिल सके तथा वह अपना जीवन आसानी से बिता सकें


Thursday, May 7, 2020

‘‘पवित्रा श्रीमद्भगवत गीता जी में सृष्टि रचना का प्रमाण‘‘





इसी का प्रमाण पवित्रा गीता जी अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 तक है। ब्रह्म (काल) कह रहा
है कि प्रकृति (दुर्गा) तो मेरी पत्नी है, मैं ब्रह्म (काल) इसका पति हूँ। हम दोनों के संयोग से सर्व
प्राणियों सहित तीनों गुणों (रजगुण - ब्रह्मा जी, सतगुण - विष्णु जी, तमगुण - शिवजी) की
उत्पत्ति हुई है। मैं (ब्रह्म) सर्व प्राणियों का पिता हूँ तथा प्रकृति (दुर्गा) इनकी माता है। मैं इसके
उदर में बीज स्थापना करता हूँ जिससे सर्व प्राणियों की उत्पत्ति होती है। प्रकृति (दुर्गा) से
उत्पन्न तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) जीव को कर्म आधार से
शरीर में बांधते हैं।
यही प्रमाण अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 16, 17 में भी है।



गीता अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 1
ऊर्ध्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्,
छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।।
अनुवाद : (ऊर्ध्वमूलम्) ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला
(अधःशाखम्) नीचे को तीनों गुण अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिव रूपी शाखा
वाला (अव्ययम्) अविनाशी (अश्वत्थम्) विस्तारित पीपल का वृक्ष है, (यस्य) जिसके (छन्दांसि) जैसे
वेद में छन्द है ऐसे संसार रूपी वृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटे हिस्से टहनियाँ व (पर्णानि) पत्ते (प्राहुः)
कहे हैं (तम्) उस संसाररूप वृक्षको (यः) जो (वेद) इसे विस्तार से जानता है (सः) वह (वेदवित्) पूर्ण
ज्ञानी अर्थात् तत्त्वदर्शी है।



गीता अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 2
अधः, च, ऊर्ध्वम्, प्रसृताः, तस्य, शाखाः, गुणप्रवृद्धाः,
विषयप्रवालाः, अधः, च, मूलानि, अनुसन्ततानि, कर्मानुबन्धीनि, मनुष्यलोके।।
अनुवाद : (तस्य) उस वृक्षकी (अधः) नीचे (च) और (ऊर्ध्वम्) ऊपर (गुणप्रवृद्धाः) तीनों गुणों
ब्रह्मा-रजगुण, विष्णु-सतगुण, शिव-तमगुण रूपी (प्रसृता) फैली हुई (विषयप्रवालाः) विकार-
काम क्रोध, मोह, लोभ अहंकार रूपी कोपल (शाखाः) डाली ब्रह्मा, विष्णु, शिव (कर्मानुबन्धीनि)
जीवको कर्मों में बाँधने की (मूलानि) जड़ें अर्थात् मुख्य कारण हैं (च) तथा (मनुष्यलोके) मनुष्यलोक
- अर्थात् पृथ्वी लोक में (अधः) नीचे - नरक, चौरासी लाख जूनियों में (ऊर्ध्वम्) ऊपर स्वर्ग लोक
आदि में (अनुसन्ततानि) व्यवस्थित किए हुए हैं।




गीता अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 3
न, रूपम्, अस्य, इह, तथा, उपलभ्यते, न, अन्तः, न, च, आदिः, न, च,
सम्प्रतिष्ठा, अश्वत्थम्, एनम्, सुविरूढमूलम्, असंगशस्त्रोण, दृढेन, छित्वा।।
अनुवाद : (अस्य) इस रचना का (न) नहीं (आदिः) शुरूवात (च) तथा (न) नहीं (अन्तः) अन्त
है (न) नहीं (तथा) वैसा (रूपम्) स्वरूप (उपलभ्यते) पाया जाता है (च) तथा (इह) यहाँ विचार काल
में अर्थात् मेरे द्वारा दिया जा रहा गीता ज्ञान में पूर्ण जानकारी मुझे भी (न) नहीं है (सम्प्रतिष्ठा)
क्योंकि सर्वब्रह्माण्डों की रचना की अच्छी तरह स्थिति का मुझे भी ज्ञान नहीं है (एनम्) इस(सुविरूढमूलम्) अच्छी तरह स्थाई स्थिति वाला (अश्वत्थम्) मजबूत स्वरूपवाले संसार रूपी वृक्ष के
ज्ञान को (असंड्गशस्त्रोण) पूर्ण ज्ञान रूपी (दृढेन्) दृढ़ सूक्षम वेद अर्थात् तत्त्वज्ञान के द्वारा जानकर
(छित्वा) काटकर अर्थात् निरंजन की भक्ति को क्षणिक अर्थात् क्षण भंगुर जानकर ब्रह्मा, विष्णु, शिव,
ब्रह्म तथा परब्रह्म से भी आगे पूर्णब्रह्म की तलाश करनी चाहिए।

”पवित्रा बाईबल तथा पवित्रा कुरान शरीफ में सृष्टि रचना का प्रमाण“

इसी का प्रमाण पवित्रा बाईबल में तथा पवित्रा कुरान शरीफ में भी है।
कुरान शरीफ में पवित्रा बाईबल का भी ज्ञान है, इसलिए इन दोनों पवित्रा सद्ग्रन्थों ने
मिल-जुल कर प्रमाणित किया है कि कौन तथा कैसा है सृष्टि रचनहार तथा उसका वास्तविक
नाम क्या है।
पवित्रा बाईबल (उत्पत्ति ग्रन्थ पृष्ठ नं. 2 पर, अ. 1ः20 - 2ः5 पर)
छटवां दिन :- प्राणी और मनुष्य :
अन्य प्राणियों की रचना करके 26. फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के
अनुसार अपनी समानता में बनाएं, जो सर्व प्राणियों को काबू रखेगा। 27. तब परमेश्वर ने मनुष्य को
अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न
किया, नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टि की।
29. प्रभु ने मनुष्यों के खाने के लिए जितने बीज वाले छोटे पेड़ तथा जितने पेड़ों में बीज वाले
फल होते हैं वे भोजन के लिए प्रदान किए हैं, (माँस खाना नहीं कहा है।)
सातवां दिन :- विश्राम का दिन :परमेश्वर ने छः दिन में सर्व सृष्टि की उत्पत्ति की तथा सातवें दिन विश्राम किया।
पवित्रा बाईबल ने सिद्ध कर दिया कि परमात्मा मानव सदृश शरीर में है, जिसने छः दिन
में सर्व सृष्टि की रचना की तथा फिर विश्राम किया।




पवित्रा कुरान शरीफ (सुरत फुर्कानि 25, आयत नं. 52, 58, 59)
आयत 52 :- फला तुतिअल् - काफिरन् व जहिद्हुम बिही जिहादन् कबीरा (कबीरन्)।।52।
इसका भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद जी का खुदा (प्रभु) कह रहा है कि हे पैगम्बर ! आप
काफिरों (जो एक प्रभु की भक्ति त्याग कर अन्य देवी-देवताओं तथा मूर्ति आदि की पूजा करते हैं)
का कहा मत मानना, क्योंकि वे लोग कबीर को पूर्ण परमात्मा नहीं मानते। आप मेरे द्वारा दिए इस
कुरान के ज्ञान के आधार पर अटल रहना कि कबीर ही पूर्ण प्रभु है तथा कबीर अल्लाह के लिए
संघर्ष करना (लड़ना नहीं) अर्थात् अडिग रहना।
आयत 58 :- व तवक्कल् अलल् - हरिल्लजी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिही व कफा बिही
बिजुनूबि िअबादिही खबीरा (कबीरा)।।58।
भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद जी जिसे अपना प्रभु मानते हैं वह अल्लाह (प्रभु) किसी और
पूर्ण प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है कि ऐ पैगम्बर उस कबीर परमात्मा पर विश्वास रख जो
तुझे जिंदा महात्मा के रूप में आकर मिला था। वह कभी मरने वाला नहीं है अर्थात् वास्तव में
अविनाशी है। तारीफ के साथ उसकी पाकी (पवित्रा महिमा) का गुणगान किए जा, वह कबीर
अल्लाह (कविर्देव) पूजा के योग्य है तथा अपने उपासकों के सर्व पापों को विनाश करने वाला है।
आयत 59 :- अल्ल्जी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन्
सुम्मस्तवा अलल्अर्शि अर्रह्मानु फस्अल् बिही खबीरन्(कबीरन्)।।59।।
भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कह रहा है कि
वह कबीर प्रभु वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो भी विद्यमान है सर्व सृष्टि की
रचना छः दिन में की तथा सातवें दिन ऊपर अपने सत्यलोक में सिंहासन पर विराजमान हो
(बैठ) गया। उसके विषय में जानकारी किसी (बाखबर) तत्त्वदर्शी संत से पूछो
उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति कैसे होगी तथा वास्तविक ज्ञान तो किसी तत्त्वदर्शी संत
(बाखबर) से पूछो, मैं नहीं जानता।
उपरोक्त दोनों पवित्रा धर्मों (ईसाई तथा मुसलमान) के पवित्रा शास्त्रों ने भी मिल-जुल
कर प्रमाणित कर दिया कि सर्व सृष्टि रचनहार, सर्व पाप विनाशक, सर्व शक्तिमान, अविनाशी
परमात्मा मानव सदृश शरीर में  में है तथा सत्यलोक में रहता है। उसका नाम कबीर है,
उसी को अल्लाहु अकबिरू भी कहते हैं।

Wednesday, May 6, 2020

‘‘सदन कसाई का उद्धार’’


एक सदन नाम का व्यक्ति एक कसाई के बुचड़खाने में नौकरी करता था।
गरीब, सो छल छिद्र मैं करूं, अपने जन के काज। हरणाकुश ज्यूं मार हूँ, नरसिंघ धरहूँ साज।।
संत गरीबदास जी ने बताया है कि परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि जो मेरी शरण
में किसी जन्म में आया है, मुक्त नहीं हो पाया, मैं उसको मुक्त करने के लिए कुछ भी लीला
कर देता हूँ। जैसे प्रहलाद भक्त की रक्षा के लिए नरसिंह रूप {मुख और हाथ शेर (स्पवद) के,
शेष शरीर नर यानि मनुष्य का} धारण करके हिरण्यकशिपु को मारा था। फिर कहा है कि :-
गरीब, जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास।
गैल-गैल लागा रहूँ, जब तक धरणी आकाश।।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है जो जन (व्यक्ति) किसी जन्म में मेरी शरण में आ गया
है। उसके मोक्ष के लिए उसके पीछे-पीछे फिरता रहता हूँ। जब तक धरती-आकाश रहेगा
(महाप्रलय तक), तब तक उसको काल जाल से निकालने की कोशिश करता रहूँ। फिर कहा
है कि :-
गरीब, ज्यूं बच्छा गऊ की नजर में, यूं सांई कूं संत।
भक्तों के पीछे फिरै, भक्त वच्छल भगवन्त।।
जैसे गाय अपने बच्चे (बछड़े-बछड़ी) पर अपनी दृष्टि रखती है। बच्चा भागता है तो
उसके पीछे-पीछे भागती है। अन्य पशुओं से उसकी रक्षा करती है। इसी प्रकार परमेश्वर
कबीर जी अपने भक्त के साथ रहता है। यदि वर्तमान जन्म में उस पूर्व जन्म के भक्त ने
दीक्षा नहीं ले रखी तो भी परमेश्वर जी उसके पूर्व जन्म के भक्ति कर्मों के पुण्य से उनके
लिए चमत्कार करके रक्षा करते हैं। उदाहरण = भैंस का सींग परमात्मा बना, द्रोपदी का
चीर बढ़ाना, प्रहलाद भक्ती की रक्षार्थ नरसिंह रूप धारण करना और इस कथा में सदन
भक्त के लिए लीला करने का वर्णन है।
शंका :- नए पाठकों को भ्रम होगा कि परमेश्वर समर्थ होता है। फिर भी लाचार
(विवश) कैसे है? एक ही जन्म में पार क्यों नहीं कर देता?
समाधान :- सब जीव अपनी गलती के कारण परमेश्वर की इच्छा के विरूद्ध अपनी
इच्छा से काल के साथ आए हैं। जिस समय परमेश्वर कबीर जी प्रथम बार हमारी सुध लेने
के लिए काल लोक में आए थे तो काल ने चरण पकड़कर कुछ शर्तें रखी थी जो परमेश्वर
कबीर जी ने मान ली थी :-
1ण् काल ब्रह्म ने कहा था कि हे प्रभु! आप कह रहे हो कि मैं जीवों को तेरे (काल ब्रह्म
के) जाल से निकालकर वापिस सतलोक लेकर जाऊँ। हे स्वामी! मेरे को सतपुरूष ने श्राप
दे रखा है कि एक लाख मानव शरीरधारी जीव खाने का तथा सवा लाख उत्पन्न करने का।
यदि सब जीव वापिस चले गए तो मेरी क्षुधा (भूख) कैसे समाप्त होगी? इसलिए आप
जोर-जबरदस्ती करके जीव न ले जाना। आप अपना ज्ञान समझाना। जो जीव आपके ज्ञानको स्वीकार करे, उसको ले जाना। जो न माने, वह मेरे लोक में रहे। परमेश्वर जी को ज्ञान
था कि जब तक इनको सत्यलोक के सुख का और काल लोक के दुःख का ज्ञान नहीं होगा
तो ये मेरा साथ देंगे ही नहीं। यदि जबरदस्ती (ठल थ्वतबम) ले जाऊँगा तो ये वहाँ रहेंगे ही
नहीं क्योंकि इनका मोह परिवार और सम्पत्ति में फँसा है। पहले इनको ज्ञान ही कराना होगा।
इसलिए परमेश्वर कबीर जी ने काल की शर्तों को स्वीकार किया था। अब काल ब्रह्म (ज्योति
निरंजन) ने पूरा जोर लगा रखा है कि सब मानव को काल जाल में फँसे रहने का ज्ञान
कराने के लिए अनेकों प्रचारक लगा रखे हैं जो केवल राम-कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी
तथा इनके अंतर्गत अन्य देवी-देवताओं-भैरो, भूत-पित्तरों, माई-मसानी, सेढ़-शीतला आदि-आदि
की महिमा का ज्ञान बताते रहते हैं। सतपुरूष (कबीर परमेश्वर जी) का नामो-निशान मिटा
रखा है। अपने पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) तथा अपनी महिमा का ज्ञान सब स्थानों पर फैला
रखा है। चारों वेद, गीता, पुराण, कुरान, बाईबल (जो तीन पुस्तकों जबूर, तौरात, इंजिल
का संग्रह है) का ज्ञान पूरी पृथ्वी पर प्रचलित कर रखा है। सब मानव इन्हीं तक सीमित
हो चुका है। इन पुस्तकों में पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का ज्ञान नहीं है। परमेश्वर कबीर जी
ने कहा है कि :-
कबीर, बेद मेरा भेद है, ना बेदन के मांही। जोन बेद से मैं मिलूँ, बेद जानत नांही।।
प्रमाण :- यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 10 में कहा है कि परमात्मा का यथार्थ ज्ञान
(धीराणाम्) तत्त्वदर्शी संत बताते हैं, उनसे (श्रुणूं) सुनो।
गीता शास्त्रा चारों वेदों का संक्षिप्त रूप है। इसमें भी कहा है कि परमात्मा तत्त्वज्ञान
यानि अपनी जानकारी तथा प्राप्ति का ज्ञान अपने मुख कमल से वाणी बोलकर बताता है।
उस ज्ञान से मोक्ष होगा। तथा सत्यलोक प्राप्ति होगी। उस ज्ञान को तत्त्वदर्शी संतों के पास
जाकर समझ।(गीता अध्याय 4 श्लोक 32ए 34 में)
कुरान शरीफ सूरत फुर्कानि 25 आयत नं. 52 से 59 में कहा है कि :-
जिस परमेश्वर ने छः दिन में सृष्टि रची। फिर तख्त पर जा विराजा।(जा बैठा) वह
अल्लाह कबीर है। उसकी जानकारी किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी संत) से पूछो।

‘‘भैंस का सींग भगवान बना’’

 एक पाली (भैंसों को खेतों में चराने वाला) अपनी भैंसों को घास चराता-चराता मंदिर
के आसपास चला गया। मंदिर में पंडित कथा कर रहा था। भगवान के मिलने के पश्चात्
होने वाले सुख बता रहा था कि जिसको भगवान मिल गया तो सब कार्य सुगम हो जाते हैं।
परमात्मा भक्त के सब कार्य कर देता है। भगवान भक्त को दुःखी नहीं होने देता। इसलिए
भगवान की खोज करनी चाहिए।
पाली भैंसों ने तंग कर रखा था। एक किसी ओर जाकर दूसरे की फसल में घुसकर
नुकसान कर देती, दूसरी भैंस किसी ओर। खेत के मालिक आकर पाली को पीटते थे।
कहते थे कि हमारी फसल को हानि करा दी। अपनी भैंसों को संभाल कर रखा कर। पाली
ने जब पंडित से सुना कि भगवान मिलने के पश्चात् सब कार्य आप करता है, भक्त मौज
करता है तो पंडित जी के निकट जाकर चरण पकड़कर कहा कि मुझे भगवान दे दो। मैं
भैंसों ने बहुत दुःखी कर रखा हूँ। पंडित जी ने पीछा छुड़ाने के उद्देश्य से कहा कि कल
आना। पाली गया तो पंडित ने पहले ही भैंस का टूटा हुआ सींग जो कूड़े में पड़ा था, उठाकर
उसके ऊपर लाल कपड़ा लपेटकर लाल धागे (नाले=मौली) से बाँधकर कहा कि ले, यह
भगवान है। इसकी पूजा करना, इसको पहले भोजन खिलाकर बाद में स्वयं खाना। कुछ
दिनों में तेरी भक्ति से प्रसन्न होकर यह भगवान मनुष्य की तरह बन जाएगा। तब तेरे सब
कार्य करेगा। यह तेरी सच्ची श्रद्धा पर निर्भर है कि तू कितनी आस्था से सच्ची लगन से
क्रिया करता है। यदि तेरी भक्ति में कमी रही तो भगवान मनुष्य के समान नहीं बनेगा।
पाली उस भैंस के सींग को ले गया। उसके सामने भोजन रखकर कहा कि खाओ
भगवान! भैंस का सींग कैसे भोजन खाता? पाली ने भी भोजन नहीं खाया। इस प्रकार
तीन-चार दिन बीत गए। पाली ने कहा कि मर जाऊँगा, परंतु आप से पहले भोजन नहीं
खाऊँगा। मेरी भक्ति में कमी रह गई तो आप मनुष्य नहीं बनोगे। मैं भैंसों ने बहुत दुःखी
कर रखा हूँ।परमात्मा तो जानीजान हैं। जानते थे कि यह भोला भक्त मृत्यु के निकट है। उस
पाखण्डी ने तो अपना पीछा छुड़ा लिया। मैं कैसे छुड़ाऊँ? चौथे दिन पाली के सामने उसी
भैंस के सींग का जवान मनुष्य बन गया। पाली ने बांहों में भर लिया और कहने लगा कि
भोजन खा, फिर मैं खाऊँगा। भगवान ने ऐसा ही किया। फिर अपने हाथों पाली को भोजन
डालकर दिया। पाली ने भोजन खाया। भगवान ने कहा कि मेरे को किसलिए लाया है? पाली
बोला कि भैंस चराने के लिए चल, भैंसों को खेत में खोल, यह लाठी ले। अब सारा कार्य
आपने करना है, मैं मौज करूँगा। परमात्मा ने लाठी थामी और सब भैंसों की अपने आप
रस्सी खुल गई और खेतों की ओर चल पड़ी। कोई भैंस किसी ओर जाने लगे तो लाठी वाला
उसी ओर खड़ा दिखाई देता। भैंसे घास के मैदान में भी घास चरने लगी। दूसरों की खेती
में कोई नुक्सान नहीं हो रहा था। पाली की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। वह अपने गुरू
जी पंडित जी का धन्यवाद करने मंदिर में गया। पंडित डर गया कि यह झगड़ा करेगा,
कहेगा कि अच्छा मूर्ख बनाया, परंतु बात विपरित हुई। पाली ने गुरू जी के चरण छूए तथा
कहा कि गुरू जी चौथे दिन आदमी रूप में भगवान बन गया। मैंने भी भोजन नहीं खाया,
प्राण निकलने वाले थे। उसी समय वह लाल वस्त्रा में बँधा भगवान जवान लड़का बन गया।
मेरी ही आयु के समान। अब सारा कार्य भगवान कर लेता है। मैं मौज करता हूँ। उसके
भोले-भाले अंदाज से बताई कथा सत्य लग रही थी, परंतु विश्वास नहीं हो रहा था। पंडित
जी ने कहा कि मुझे दिखा सकते हो, कहाँ है वह युवा भगवान। पाली बोला कि चलो मेरे
साथ। पंडित जी पाली के साथ भैंसों के पास गया। पूछा कि कहाँ है भगवान? पाली बोला
कि क्या दिखाई नहीं देता, देखो! वह खड़ा लाठी ठोडी के नीचे लगाए। पंडित जी को तो
केवल लाठी-लाठी ही दिखाई दे रही थी क्योंकि उसके कर्म लाठी खाने के ही थे। पाली से
कहा कि मुझे लाठी-लाठी ही दिखाई दे रही है। कभी इधर जा रही है, कभी उधर जा रही
है। तब पाली ने कहा कि भगवान इधर आओ। भगवान निकट आकर बोला, क्या आज्ञा है?
पंडित जी को आवाज तो सुनी, लाठी भी दिखी, परंतु भगवान नहीं दिखे। पाली बोला, आप
मेरे गुरू जी को दिखाई नहीं दे रहे हो, इन्हें भी दर्शन दो। भगवान ने कहा, ये पाखण्डी है।
यह केवल कथा-कथा सुनाता है, स्वयं को विश्वास नहीं। इसको दर्शन कैसे हो सकते हैं?
पंडित जी यह वाणी सुनकर लाठी के साथ पृथ्वी पर गिरकर क्षमा याचना करने लगा।
भगवान ने कहा, यह भोला बालक मर जाता तो तेरा क्या हाल होता? मैंने इसकी रक्षा की।
पाली के विशेष आग्रह से पंडित जी को भी विष्णु रूप में दर्शन दिए क्योंकि वह श्री विष्णु
जी का भक्त था। फिर अंतर्ध्यान हो गया।
प्रिय पाठकों से निवेदन है कि इस कथा का भावार्थ यह न समझना कि पाली की तरह
हठ योग करने से परमात्मा मिल जाता है। यदि कुछ देर दर्शन भी दे गए और कुछ जटिल
कार्य भी कर दिए। इससे जन्म-मरण का दीर्घ रोग तो समाप्त नहीं हुआ। वह तो पूर्ण गुरू
से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर आजीवन साधना करने से ही समाप्त होगा।

Tuesday, May 5, 2020

’’सुमिरन के अंग का सरलार्थ‘‘

शब्दार्थ :- अथ = प्रारम्भ, अविगत = जिस परमेश्वर की गति यानि सामर्थ्य कोई नहीं
जानता। जिसको गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में परम अक्षर ब्रह्म कहा है तथा अध्याय 8 के
ही श्लोक 8ए 9ए 10 में परम दिव्य पुरूष तथा श्लोक 20 से 22 में अविनाशी अव्यक्त कहा
है। गीता अध्याय 18 श्लोक 61.62ए 66 में गीता ज्ञान दाता ने जिस परमेश्वर की शरण में
जाने के लिए कहा है, उसी को संत गरीबदास जी ने अविगत राम कहा है।
 राम की परिभाषा :- राम कहो, प्रभु, स्वामी, अल्लाह, भगवान, ईश, परमात्मा या साहब
(साहिब) कहो। ये परमात्मा का बोध कराने वाले नाम हैं।
उदाहरण के लिए :- जैसे तहसीलदार साहब अपने कार्य क्षेत्रा का स्वामी है, मालिक
है, प्रभु है।




उपायुक्त साहब :- यह अपने जिले में साहब, स्वामी, प्रभु, मालिक है।
आयुक्त साहब :- यह कई जिलों का साहब, स्वामी, प्रभु, मालिक है।
प्रान्त का मंत्रा भी साहब है, स्वामी, प्रभु है। मुख्यमंत्रा भी साहब (राम, प्रभु, स्वामी)
है। केन्द्र सरकार का मंत्रा भी साहब (राम, प्रभु, स्वामी) है।
देश के प्रधानमंत्रा जी भी साहब (राम, प्रभु, स्वामी) हैं।
देश के राष्ट्रपति जी भी साहब (स्वामी, राम, प्रभु)र्हिं।
परंतु इन सबकी अपनी-अपनी सीमाएँ हैं। अपने-अपने कार्यक्षेत्रा के सब ही प्रभु हैं,
परंतु वास्तव में समर्थ शक्ति राष्ट्रपति जी हैं। उनके पश्चात् प्रधानमंत्रा जी समर्थ शक्ति हैं।
पूर्ण साहब हैं।
इस सुमरण के अंग में वाणी नं. 15.16 में कहा है कि मूल कमल में राम है यानि गणेश
जी हैं। यह भी स्वामी हैं। राम हैं यानि देव हैं। (स्वाद कमल में राम) ब्रह्मा-सावित्रा भी प्रभु
हैं। (नाभि कमल में राम) विष्णु-लक्ष्मी भी प्रभु हैं। (हृदय कमल विश्राम) हृदय कमल में
शिव-पार्वती भी प्रभु (राम) हैं।(15)
(कण्ठ कमल में राम है) देवी दुर्गा भी राम है, मालिक-स्वामी है। (त्रिकुटी कमल में
राम) सतगुरू रूप में परमेश्वर त्रिकुटी में विराजमान हैं। वे उस स्थान पर सतगुरू रूप में
अपने कार्य के स्वामी (राम-प्रभु) हैं। (संहस कमल दल राम है) काल-निरंजन भी अपने 21
ब्रह्माण्डों का राम (स्वामी-प्रभु) है जो संहस्र कमल दल में अव्यक्त रूप में बैठा है। (सुनि
बस्ती सब ठाम) सब स्थानों (लोकों) पर जिसकी सत्ता है, वह सतपुरूष भी राम (स्वामी, प्रभु)
है। वाणी नं. 17 में कहा है कि वास्तव में समर्थ राम है :-
अचल अभंगी राम है, गलताना दम लीन। सुरति निरति के अंतरे बाजै अनहद बीन।।
अचल (स्थाई) अभंगी (अविनाशी) जो कभी भंग यानि नष्ट नहीं होता, वह समर्थ राम है।
सुमरण का अर्थ है परमात्मा के सत मंत्रा का जाप करना। जैसे कबीर परमेश्वर जी ने
 कहा है कि :-
सारशब्द का सुमरण करहीं, सो हंसा भवसागर तरहीं।
सुमरण का बल ऐसा भाई। कालही जीत लोक ले जाई।।
नाम सुमरले सुकर्म करले कौन जाने कल की, खबर नहीं पल की।
श्वांस-उश्वांस में नाम जपो, बिरथा श्वांस न खोय। ना बेरा इस श्वांस का, आवन हो के ना होय।।
कहता हूँ कही जात हूँ, सुनता है सब कोय। सुमरण से भला होयेगा, नातर भला ना होय।।
सुमरण मार्ग सहज का, सतगुरू दिया बताय। श्वांस-उश्वांस जो सुमरता, एक दिन मिलसी आय।।
 राग आसावरी से शब्द नं. 63ए66 तथा 75 :-
नर सुनि रे मूढ गंवारा। राम भजन ततसारा।।टेक।। राम भजन बिन बैल बनैगा, शूकर श्वान
शरीरं। कउवा खर की देह धरैगा, मिटै न याह तकसीरं।।1।। कीट पतंग भवंग होत हैं, गीदड़
जंबक जूंनी। बिना भजन जड़ बिरछ कीजिये, पद बिन काया सूंनी।।2।। भक्ति बिना नर खर एकै
हैं, जिनि हरि पद नहीं जान्या। पारब्रह्म की परख नहीं रे, पूजि मूये पाषानां।।3।। थावर जंगम में
जगदीशं, व्यापक पूरन ब्रह्म बिनांनी। निरालंब न्यारा नहीं दरसै, भुगतैं चार्यौं खांनी।।4।। तोल न
मोल उजन नहीं आवै, असथरि आनंद रूपं। घटमठ महतत सेती न्यारा, सोहं सति सरूपं।।5।।
बादल छांह ओस का पानी, तेरा यौह उनमाना। हाटि पटण क्रितम सब झूठा, रिंचक सुख
लिपटांना।।6।। नराकार निरभै निरबांनी, सुरति निरति निरतावै। आत्मराम अतीत पुरुष कूं,
गरीबदास यौं पावै।।7।।।63।। भजन करौ उस रब का, जो दाता है कुल सब का।।टेक।।
बिनां भजन भै मिटै न जम का, समझि बूझि रे भाई। सतगुरु नाम दान जिनि दीन्हा, याह संतौं
ठहराई।।1।। सतकबीर नाम कर्ता का, कलप करै दिल देवा। सुमरन करै सुरति सै लापै, पावै हरि
पद भेवा।।2।। आसन बंध पवन पद परचै, नाभी नाम जगावै। त्रिकुटी कमल में पदम झलकै, जा सें
ध्यान लगावै।।3।। सब सुख भुक्ता जीवत मुक्ता, दुःख दालिद्र दूरी। ज्ञान ध्यान गलतांन हरी पद,
ज्यौं कुरंग कसतूरी।।4।। गज मोती हसती कै मसतगि, उनमन रहै दिवानां। खाय न पीवै मंगल
घूमें, आठ बखत गलतानां।।5।। ऐसैं तत पद के अधिकारी, पलक अलख सें जोरैं। तन मन धन
सब अरपन करहीं, नेक न माथा मोरैं।।6।। बिनहीं रसना नाम चलत है, निरबांनी सें नेहा।
गरीबदास भोडल में दीपक, छांनि नहीं सनेहा।।7।।66।। भक्ति मुक्ति के दाता सतगुरु। भक्ति
मुक्ति के दाता।। टेक।। पिण्ड प्रांन जिन्हि दान दिये हैं, जल सें सिरजे गाता। उस दरगह कूं भूलि
गया है, कुल कुटंब सें राता।।1।। रिधि सिधि कोटि तुरंगम दीन्हें, ऐसा धनी बिधाता। उस समरथ
की रीझ छिपाई, जग से जोर्या नाता।।2।। मुसकल सें आसान किया था, कहां गई वै बाता। सत
सुकृत कूं भूलि गया है, ऊंचा किया न हाथा।।3।। सहंस इकीसौं खंड होत हैं, ज्यौं तरुवर कैं
पाता। थूंनी डिगी थाह कहाँ पावै, यौह मंदर ढह जाता।।4।। इस देही कूं देवा लोचैं, तूं नरक्यौं
उकलाता। नर देही नारायन येही, सनक सनन्दन साथा।।5।। ब्रह्म महूरति सूरति नगरी, शुन्य
सरोवर न्हाता। या परबी का पार नहीं रे, सकल कर्म कटि जाता।।6।। सुरति निरति मन पवन बंद
करि, मेरदण्ड चढि जाता। सहंस कमल दल फूलि रहै है, अमी महारस खाता।।7।। जहां अलख
निरंजन जोगी बैठ्या, जा सें रह्मा न भाता। गरीबदास पारंग प्रान है, संख कमल खिलि
जाता।।8।।75।।