Tuesday, April 19, 2022

What Is Name Of Allah?

पवित्र क़ुरान शरीफ सुरत फुरकान स. 25  आयत 52, 58, 59 में जिस कबीर अल्लाह का विवरण है वह कादर खुदा है।
जिसे अल्लाहु अकबर (अकबीरू) भी कहते हैं। 
वह कबीर नामक अल्लाह ही है जिसने ज़मीन तथा आसमान के मध्य जो कुछ भी है सर्व की रचना छः दिन में की है तथा सातवें दिन आसमान में तख़्त पर जा विराजा। 
बाखबर

पवित्र कुरान शरीफ में अल्लाह की पूरी जानकारी के लिए किसी बाखबर को खोजने को हैं। वह ही अल्लाह की सही जानकारी बता सकता है।

प्रमाण के लिए पढ़ें पवित्र कुरान शरीफ, सूरत - फुरकानि 25 आयत 59

कुरआन की सूरत फुरकानि 18 आयत 60-82 में कुरआन ज्ञान दाता ने मुहम्मद जी को बताया कि हज़रत मूसा को ज्ञान प्राप्ति के लिए मैंने अल-खिद्र के पास भेजा। 

साथ ही सूरत फुरकानि 25 आयत 52-59 में कुरआन ज्ञान देने वाला खुदा कहता कि जिस खुदा ने सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की उसका नाम कबीर है, उसकी खबर किसी बाख़बर संत से पूछो। 

इससे स्पष्ट है कि यदि आसमानी किताब तौरेत, जबूर, इंजिल, क़ुरान में अल-खिद्र वाला सम्पूर्ण ज्ञान होता, तो कुरआन ज्ञानदाता हज़रत मुहम्मद को बाख़बर के लिए संकेत नहीं करता। 

Wednesday, August 5, 2020

Janmastmi: Lord Krishna

 जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है

जन्माष्टमी पर्व को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व पूरी दुनिया में पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी को भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण युगों-युगों से हमारी आस्था के केंद्र रहे हैं। वे कभी यशोदा मैया के लाल होते हैं, तो कभी ब्रज के नटखट कान्हा।
 
जन्माष्टमी कब और क्यों मनाई जाती है : -
 
भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जन्माष्टमी पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जो रक्षाबंधन के बाद भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
 
श्रीकृष्ण देवकी और वासुदेव के 8वें पुत्र थे। मथुरा नगरी का राजा कंस था, जो कि बहुत अत्याचारी था। उसके अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे। एक समय आकाशवाणी हुई कि उसकी बहन देवकी का 8वां पुत्र उसका वध करेगा। यह सुनकर कंस ने अपनी बहन देवकी को उसके पति वासुदेवसहित काल-कोठारी में डाल दिया। कंस ने देवकी के कृष्ण से पहले के 7 बच्चों को मार डाला। जब देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया, तब भगवान विष्णु ने वासुदेव को आदेश दिया कि वे श्रीकृष्ण को गोकुल में यशोदा माता और नंद बाबा के पास पहुंचा आएं, जहां वह अपने मामा कंस से सुरक्षित रह सकेगा। श्रीकृष्ण का पालन-पोषण यशोदा माता और नंद बाबा की देखरेख में हुआ। बस, उनके जन्म की खुशी में तभी से प्रतिवर्ष जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है।



 जन्माष्टमी कितनी लाभदायक हैं
क्या जन्माष्टमी मानने से कोई लाभ प्राप्त होता है
प्रत्येक त्योहार में लोकवेद की अहम भूमिका रही है।
लोकवेद के अनुसार जन्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। और रासलीला का आयोजन होता है।
स्कन्द पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। भविष्य पुराण का वचन है- भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। एक मान्यता के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। लेकिन कृष्ण जी खुद अपने कर्म के पाप प्रभाव को नहीं काट सके तो भक्तों के कैसे काटेंगे। (पुराणों में लिखित मत ब्रह्मा जी का है पूर्ण ब्रह्म परमात्मा का नहीं है।)
जिस समय गीता जी का ज्ञान बोला जा रहा था, उससे पहले न तो अठारह पुराण थे, न ग्यारह उपनिषद् और न ही छः शास्त्र थे। उस समय केवल पवित्र चारों वेद ही शास्त्र रूप में प्रमाणित थे और उन्हीं पवित्र चारों वेदों का सारांश पवित्र गीता जी में वर्णित है।

व्रत करना गीता अनुसार कैसा है?
श्रीमद्भगवत् गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में व्रत/उपवास करने को मना किया गया है कि हे अर्जुन! यह योग (भक्ति) न तो अधिक खाने वाले की और न ही बिल्कुल न खाने वाले की अर्थात् यह भक्ति न ही व्रत रखने वाले, न अधिक सोने वाले की तथा न अधिक जागने वाले की सफल होती है। इस श्लोक में व्रत रखना पूर्ण रुप से मना है। जो ऐसा कर रहे हैं वह शास्त्र विरुद्ध साधना कर रहे हैं।




द्वापरयुग में लिया कृष्ण अवतार
द्वापरयुग में कृष्ण जी के 56 करोड़ की आबादी वाले यादव कुल का आपस में लड़ने से नाश हो गया था। जिसे श्रीकृष्ण जी लाख यत्न कर भी नहीं रोक पाए थे। इस सबसे दुखी होकर कृष्ण जी वन में एक वृक्ष के नीचे एक पैर पर दूसरा पैर रखकर लेटे हुए थे। वृक्ष की छाया में विश्राम कर रहे कृष्ण जी के एक पैर में पदम (जन्म से ही लाल निशान था) जो की सूर्य की रोशनी में हिरन की आंख की तरह चमक रहा था। शिकारी शिकार की तलाश में वन में घूम रहा था। तभी दूर से शिकारी ने देखा वहां पेड़ के नीचे हिरन है। उसने पेड़ की ओट लेकर ज़हर में बुझा हुआ तीर हिरन की आंख समझ कर छोड़ दिया और वह ज़मीन पर लेटे हुए कृष्ण जी के पैर में पदम पर जा लगा। तभी कृष्ण जी चिल्लाए कि हाय ! मर गया। शिकारी घबराया हुआ उनके पास दौड़ कर आया और देखकर रोने लगा। अपने अपराध की क्षमा याचना करने लगा। कृष्ण जी ने उससे कहा, आज तेरा बदला पूरा हुआ। शिकारी बोला हे महाराज ! कौन सा बदला? आपसे तो सभी प्रेम करते हैं। आप की और मेरी कोई दुश्मनी भी नहीं है? तब कृष्ण जी ने उसे त्रेतायुग वाला सारा वृत्तांत कह सुनाया और उससे कहा की तू जल्दी यहां से भाग जा वरना तुझे सब मार डालेंगे। बस मेरा संदेश अर्जुन तक पहुंचा दे की जल्दी मुझसे यहां आकर मिले। अर्जुन के वहां पहुंचने पर कृष्ण जी ने उसे यह कहा की आप पांचों भाई हिमालय पर जाकर तप करते हुए शरीर त्याग देना और कृष्ण जी तड़पते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए। अर्जुन वहां खड़ा खड़ा सोच रहा है कि यह कृष्ण भी बड़े बहरूपिया, छलिया थे। महाभारत के युद्ध के दौरान कह रहे थे कि अर्जुन तेरे दोनों हाथों में लड्डू है। युद्ध में मारा गया तो सीधा स्वर्ग जाएगा और जीत गया तो राजा बनेगा।
Janmastmi How profitable
कबीर, राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नाहीं संसार।
जिन साहब संसार किया, सो किनहु न जनम्यां नारि।।

उपर्युक्त सत्य विवरण से आप स्वयं यह निर्णय कर सकते हैं कि तीन लोक के मालिक (पृथ्वी,पाताल और स्वर्ग) विष्णु जी भी जन्म और मृत्यु, श्राप, कर्म बंधन से स्वयं को नहीं बचा सके तो अपने साधक की रक्षा कैसे करेंगे।

जन्म लेने से पहले से ही माता की कोख में कृष्ण जी सुरक्षित नहीं थे। मामा कंस उनके जन्म का इंतजार कर रहा था कि गर्भावस्था से बाहर आते ही इस बालक की हत्या कर दूंगा जो मेरी जान के लिए खतरा है। कृष्ण जी ने भले ही कंस, शिशुपाल, कालयवन, जरासंध और पूतना का वध किया था। जिस कारण लोगों ने इन्हें भगवान मान लिया। गोवर्धन पर्वत अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया तो उन्हें भगवान की श्रेणी में डाल दिया, शेषनाग ने तो पूरी सृष्टि को अपने सिर पर उठाया हुआ है तो उसे आप भगवान क्यों नहीं मानते? विष्णु जी केवल सोलह कलाओं के भगवान हैं और जिसकी शरण में जाने से पूर्ण सरंक्षण मिलेगा वह अनंत कलाओं का परमात्मा है। श्रीकृष्ण स्वर्ग के राजा हैं पृथ्वी पर तो श्राप वश आए और पूरा जीवन जन्म से लेकर मृत्यु तक दुखी रहे। पृथ्वी पर सुख नाम की कोई वस्तु नहीं है। श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक 12, गीता अध्याय 4 श्लोक 5, गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी कि मेरी तो उत्पत्ति हुई है, मैं जन्मता-मरता हूँ, अर्जुन मेरे और तेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, मैं भी नाशवान हूँ। गीता अध्याय 2 श्लोक 17 में भी कहा है कि अविनाशी तो उसको जान जिसको मारने में कोई भी सक्षम नहीं है और जिस परमात्मा ने सर्व की रचना की है।

श्री कृष्ण ने 16000 ब्याह रचाए, गोपियों के संग रास रचाया, माखन चुराया, गोपियों के वस्त्र चुराए, अपनी ही सगी मामी राधा संग संबंध बनाए फिर भी हम उन पर रीझते हुए नहीं थकते। क्या ऐसा संबंध भगवान की श्रेणी में आने वाले ईश को शोभा देता है। उनकी पूजा करने वाला कोई व्यक्ति यदि ऐसा कर्म संबंध करें तो समाज में क्या वो स्वीकार्य होगा?

आइए जानते हैं कि गीता जी में कौन सा गूढ़ भक्ति रहस्य लिखित है जो सर्व मानव समाज के लिए समझना आवश्यक है। वह परमेश्वर पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब हैं जो तत्वदर्शी संत की भूमिका में संत रामपाल जी रूप में धरती पर अवतरित हैं। जो ब्रह्मा, विष्णु, शिव के दादा और काल के पिता और हम सब के भी जनक हैं।

Tuesday, July 14, 2020

Guru Purnima

 गुरु पूर्णिमा की संक्षिप्त जानकारी
 गुरु पूर्णिमा को व्‍यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन महर्षि वेद व्यास जी का जन्मदिवस भी होता है। लगभग 5000 साल पहले, महर्षि वेद व्यास ने वेदों का संकलन किया था। उन्होंने मंत्रों को चार संहिताओं (संग्रह) में व्यवस्थित किया जो चार वेद हैं: पवित्र ऋग्वेद, पवित्र यजुर्वेद, पवित्र सामवेद, पवित्र अथर्ववेद। वे वैदिक संस्कृत में लिखे गए थे । लेकिन आज इन वेदों का हिंदी और कुछ अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया जा चुका है। वेद व्यास जी ने 18 पुराण और महाभारत को भी लिखा। यह वही वेद व्यास जी हैं जिनका पुत्र शुकदेव/सुखदेव था जो बारह वर्ष तक तीनों गुणों ब्रह्मा, विष्णु और शिव से डरकर मां के गर्भ में रहा था।

कबीर, गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, पूछो वेद पुराण।।
शुकदेव ऋषि और राजा जनक
पहले शुकदेव का कोई गुरू नहीं था। शुकदेव को अपने ज्ञान पर अंहकार था जिस कारण वह उड़ कर विष्णु लोक में पहुंच गया परंतु वहां के पहरेदारों ने उसे अंदर प्रवेश नहीं करने दिया। अंदर न जाने देने का कारण था बिना गुरु का होना। पहरेदारों से प्रार्थना करने पर विष्णु जी द्वार पर शुकदेव से आकर मिले और विष्णु लोक में आने का कारण पूछा। विष्णु जी ने शुकदेव को बिना भाव दिए कहा, नीचे जाइए और जाकर राजा जनक को अपना गुरू बनाइए। विष्णु जी का यह आदेश पाकर शुकदेव जी ने राजा जनक से नामदीक्षा प्राप्त की। (राजा जनक पहले राजा अमरीश थे और कलयुग में गुरू नानक देव जी वाली आत्मा रूप में जन्म लिया। काशी वाले धानक/जुलाहे कबीर जी (परमात्मा) गुरू रूप में जब आए थे उनसे नामदीक्षा ली और अपना कल्याण करवाया।)
बिना गुरु मुक्ति संभव नहीं
यदि गुरु धारण किए बिना मनमर्जी से कुछ धर्म किया तो उसका फल भी मिलेगा क्योंकि जैसा कर्म मानव करता है, उसका फल परमात्मा अवश्य देता है, परन्तु ऐसा करने से न तो मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है और न ही मानव जन्म मिलना सम्भव है। बिना गुरु (निगुर) धार्मिक व्यक्ति को किये गये धर्म का फल पशु-पक्षी आदि की योनियों में प्राप्त होगा। जैसे हम देखते हैं कि कई कुत्ते कार-गाडि़यों में चलते हैं। मनुष्य उस कुत्ते का ड्राईवर होता है। वातानुकुल कक्ष में रहता है। विश्व के 80 प्रतिशत मनुष्यों को ऐसा पौष्टिक भोजन प्राप्त नहीं होता जो उस पूर्व जन्म के धर्म के कारण कुत्ते को प्राप्त होता है।



 यदि उस प्राणी ने मानव शरीर में गुरु बनाकर धर्म (दान-पुण्य) यज्ञ की होती तो वह या तो मोक्ष प्राप्त कर लेता। यदि भक्ति पूरी नहीं हो पाती तो मानव जन्म अवश्य प्राप्त होता तथा मानव शरीर में वे सर्व सुविधाएं भी प्राप्त होती जो कुत्ते के जन्म में प्राप्त थी। मानव जन्म में फिर कोई साधु सन्त-गुरु मिल जाता और वह अपनी भक्ति पूरी करके मोक्ष का अधिकारी बनता। इसलिए कहा है कि यज्ञों का वास्तविक लाभ प्राप्त करने के लिए पूर्ण गुरु
को धारण करना अनिवार्य है।

गुरु को मानुष जानते, ते नर कहिए अन्ध ।
होय दुखी संसार में , आगे जम की फन्द ।।

कबीर जी ने सांसारिक प्राणियों को ज्ञान का उपदेश देते हुए कहा है की जो मनुष्य गुरु को सामान्य प्राणी (मनुष्य) समझते हैं उनसे बड़ा मूर्ख जगत में अन्य कोई नहीं है, वह आंखों के होते हुए भी अन्धे के समान हैं तथा जन्म-मरण के भव-बंधन से मुक्त नहीं हो पाते । विषय ज्ञान देने वाले गुरू से श्रेष्ठ आध्यात्मिक ज्ञान देने वाला गुरू होता है जो जगत का पालनहार होता है। (पढ़ें पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा)

असली गुरु कौन होता है?
जो मनुष्य को आत्म और परमात्म ज्ञान का भेद बताए आत्म ज्ञान जिससे मनुष्य को यह ज्ञान होता है कि आत्मा न तो नर है न नारी वह किसी ‌और चोले में है। परमात्म ज्ञान जिससे मनुष्य को यह ज्ञान होना कि परमात्मा कौन है , कैसा है, कहां रहता है, पृथ्वी पर कब और क्यों आता है , मनुष्य और परमात्मा का क्या संबंध है? ऐसा उच्च कोटि का ज्ञान कोई साधारण गुरू नहीं दे सकता । इसके लिए सतगुरू की तलाश करनी चाहिए।

 बौद्ध ज्ञान से मोक्ष असंभव
गुरु पूर्णिमा बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध, जिन्होंने ‘मोक्ष’ की तलाश में अपना राज्य और सिंहासन त्याग दिया था, ने इस शुभ दिन पर अपना पहला उपदेश दिया था जिसे कुछ लोगों द्वारा बुद्ध पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। परंतु सनद रहे गौतम बुद्ध का अपना कोई गुरू नहीं था उनका ज्ञान व्यवहारिक और साधारण था तथा आत्म और परमात्म ज्ञान से कोसों दूर था। गौतम बुद्ध के ज्ञान से न तो लाभ संभव है न मोक्ष। जब मोक्ष गौतम बुद्ध का ही नहीं हुआ तो बुद्ध धर्म को जीवित रखने वालों का कैसे संभव है। स्वप्न में भी नहीं।

सतगुरु खोजे संत, जीव काज को चाहहु |
मेटो भव के अंक, आवा गवन निवारहु ||

हे मनुष्यों! यदि अपने जीवन का कल्याण चाहते हो, तो सतगुरु की खोज करो जो आपके पाप मिटाकर आपको जन्म – मरण से रहित कर देगा।

गुरु अनेक हैं पर साचा गुरू कौन?
जो मिस्त्री का काम सिखाए वह भी गुरू,जो बाल काटने सिखाए, कपड़ा सिलना सिखाए, जो‌ खाना बनाना सिखाए ,माता पिता चलना और जीना सिखाते , रिश्तेदार रिश्ते निभाना , अध्यापक शिक्षा का महत्व बताते हैं यह सभी अपनी तरह के अलग गुरू हैं। जो आपको आर्ट आफ लिविंग सिखाए ,योगा सिखाने, कुण्डली साधना सिखाए ,यहां वहां का ज्ञान बांचें , ब्रह्म तक की साधना बताएं, मुरली सुनाएं ,कर‌नैनों दीदार तक का ज्ञान दें समाज में ऐसे व्यवहारिक गुरूओं की कमी नहीं है।


विश्व की वर्तमान जनसंख्या 7.61 अरब है और हर व्यक्ति को अपनी ज़िंदगी में एक मसीहा या गुरू की आवश्यकता होती है। साक्षर ज्ञान कराने वाला गुरू सम्माननीय है परंतु जो सहज में अध्यात्म ज्ञान दे दे उससे बड़ा दूसरा कोई और गुरु नहीं।

गुरु गुरु में भेद
विद्यालय में जो गुरू है वह आपको स्कूल के बाद क्या बनना है और पैसा कैसे कमाना है इसकी शिक्षा देगा।
माता पिता भी गुरू की तरह ही होते हैं। जो समय समय पर मार्ग दर्शन करते हैं। परंतु प्रत्येक व्यक्ति को एक ऐसा गुरू चाहिए जो सबको एक जैसा ज्ञान दे,जो आत्मा की ज़रूरत को समझे, आखिर ऐसा गुरू कौन है? जो आर्ट ऑफ लिविंग,योगा, व्यवहारिक, सामाजिक ज्ञान से हटकर‌ पूर्ण परमात्मा का सच्चा ज्ञान‌ दे, जो वाकई में पूजनीय हो। सामाजिक गुरू सम्माननीय होते हैं परंतु पूजनीय तो केवल एक कबीर है।

गुरु गोविंद करी जानिए, रहिए शब्द समाय ।
मिलै तो दण्डवत बन्दगी , नहीं पलपल ध्यान लगाय ।।

कबीर साहेब जी कहते हैं – हे मानव! गुरु और गोविंद को एक समान जानें । गुरु ने जो ज्ञान का उपदेश किया है उसका सिमरन/जाप करें । जब भी गुरु का दर्शन हो अथवा न हो तो सदैव उनका ध्यान करें जिसने तुम्हें गोविंद से मिलाप करने का सुगम मार्ग बताया है। गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। अभी तक हम केवल विद्या देने वाले और‌ व्यावसायिक, व्यावहारिक, ज्ञान देने वाले गुरू को ही सर्वश्रेष्ठ गुरू मानते रहे हैं। परंतु असली गुरू तो वह है जो आत्मा को परमात्मा से मिलवा दे उसे मोक्ष का रास्ता दिखा दे।

कबीर साहेब से बड़ा कोई गुरू नहीं


गुरु महिमा गावत सदा, मन राखो अतिमोद ।
सो भव फिर आवै नहीं, बैठे प्रभू की गोद ।।

जो प्राणी गुरु की महिमा का सदैव बखान करता है और उनके आदेशों का प्रसन्नता पूर्वक पालन करता है उस प्राणी का पुनः इस भव बन्धन रुपी संसार में आगमन नहीं होता । संसार के भव चक्र से मुक्त होकर सतलोक को प्राप्त होता है । अर्थात् सदा गुरू रुप में आए परमात्मा द्वारा दी गई सतभक्ति का अनुसरण करें। जाप/सिमरन जो गुरू/सतगुरू जी‌ दें उसका निरंतर जाप करते रहें तो मोक्ष संभव है।

परमेश्वर कबीर साहेब जो न केवल संत हैं बल्कि परमात्मा भी स्वयं हैं उन्होंने प्रत्येक युग में गुरू की महिमा का बखान किया है। यदि नानक देव जी,मीरा बाई ,इंद्रमति, प्रहलाद, ध्रुव,रविदास जी,सिकंदर लोदी, धर्मदास जी, दादू जी, नल नील , गरीबदास जी को कबीर साहेब जी गुरू रूप में आकर न मिलते तो इनका उद्धार संभव नहीं था। इन सभी महानुभावों ने गुरु महिमा और उनके चरणों में अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। समाज से उलाहने सुने परंतु अपना आत्म उद्धार करवाने का उद्देश्य कभी नहीं छोड़ा।

गुरु ग्रन्थ साहेब, राग आसावरी, महला 1 के कुछ अंश –

साहिब मेरा एको है। एको है भाई एको है।
आपे रूप करे बहु भांती नानक बपुड़ा एव कह।।
(पृ. 350)

जो तिन कीआ सो सचु थीआ, अमृत नाम सतगुरु दीआ।। (पृ. 352)​

गुरु पुरे ते गति मति पाई। (पृ. 353)​

बूडत जगु देखिआ तउ डरि भागे।​
सतिगुरु राखे से बड़ भागे, नानक गुरु की चरणों लागे।। (पृ. 414)

मैं गुरु पूछिआ अपणा साचा बिचारी राम। (पृ. 439)

उपरोक्त वाणी में, गुरु नानक जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि साहिब (भगवान) केवल एक हैं और मेरे गुरु जी ने नाम जाप का उपदेश दिया। उनके अनेक रूप हैं। वो ही सत्यपुरुष हैं, वो जिंदा महात्मा के रूप में भी आते है, वो ही एक बुनकर (धानक) के रूप में बैठे हुए हैं, एक साधारण व्यक्ति यानी भक्त की भूमिका करने भी स्वयं आते हैं।

गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥

हिंदू धर्म में गुरु और ईश्वर दोनों को एक समान माना गया है। गुरु भगवान के समान है और भगवान ही गुरु हैं। गुरु ही ईश्वर को प्राप्त करने और इस संसार रूपी भव सागर से निकलने का रास्ता बताते हैं। गुरु के बताए मार्ग पर चलकर मानव परमात्मा और मोक्ष को प्राप्त करता है। शास्त्रों और पुराणों में कहा गया कि अगर भक्त से परमात्मा नाराज़ हो जाते हैं तो गुरु ही आपकी रक्षा और उपाय बताते हैं। आज के समय में ऐसा गुरू एकमात्र संत रूप में संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो मानव को परमात्मा से मिलवा कर मोक्ष प्रदान कर रहे हैं।

परमात्मा ही गुरु की भूमिका स्वयं निभाते हैं
गुरु बनाने से पहले यह जानना भी ज़रूरी है कि गुरू का गुरू कौन है जैसे डाक्टर से इलाज करवाने से पहले उसकी डिग्री देखते हैं, अध्यापक को नौकरी पर रखने से पहले उसका शिक्षा संबंधी बैकग्राउंड चैक करते हैं उसी प्रकार गुरू बनाने से पहले यह जांचना ज़रूरी है कि गुरू , गुरू कहलाने लायक भी है या नहीं।

कबीर साहेब जी 600 वर्ष पूर्व काशी में आए थे जब उन्होंने पांच वर्ष की आयु में 104 वर्षीय रामानंद जी को अपना गुरू बनाया। अति आधीन रहकर गुरू शिष्य परंपरा का निर्वाह किया व समाज को यह उदाहरण करके दिखाया कि जब सृष्टि का पालनहार गुरू बनाकर नियम में रहकर भक्ति कर रहा है तो आप किस खेत की मूली हैं।

जब तक गुरू मिले न सांचा
तब तक गुरू करो दस पांचा।।

सच्चा सतगुरु वही है जो हमारे सभी धर्मों के शास्त्रों से सिद्ध ज्ञान और सद्बुद्धि देकर मोक्ष देता है। आज वर्तमान पूरे विश्व में जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज ही सच्चे व पूर्ण गुरु है, इसलिए संत रामपाल जी से नाम दीक्षा लें और अपना कल्याण करवाए

Tuesday, July 7, 2020

Mahashivratri


  1. महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है





शिवरात्रि हर महीने चतुर्दशी तिथि को पड़ती है लेकिन फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी महाशिवरात्रि कहते हैं। महाशिवरात्रि के दिन शिव के भक्त कांवड़ से गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। महाशिवरात्रि का व्रत महिलाओं के लिए खास महत्व का माना गया है। मान्यता है कि अविवाहित कन्या विधिपूर्वक इस व्रत को रखती हैं तो उनकी शादी शीघ्र ही हो जाती है। वहीं विवाहित महिलाएं अपने सुखद वैवाहिक जीवन के लिए भी इस व्रत को धारण करती हैं। महाशिवरात्रि के विषय में धार्मिक मान्यता यह भी है कि इस दिन शिव और पार्वती का विवाह हुआ था।
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है


                  पहली बार प्रकट हुए थे शिवजी


पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका न तो आदि था और न अंत। बताया जाता है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्माजी हंस के रूप में शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। वह शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए। दूसरी ओर भगवान विष्णु भी वराह का रूप लेकर शिवलिंग के आधार ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला।
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है

             
 शिव और शक्ति का हुआ था मिलन

महाशिवरात्रि को पूरी रात शिवभक्त अपने आराध्य जागरण करते हैं। शिवभक्त इस दिन शिवजी की शादी का उत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि को शिवजी के साथ शक्ति की शादी हुई थी। इसी दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। शिव जो वैरागी थी, वह गृहस्थ बन गए। माना जाता है कि शिवरात्रि के 15 दिन पश्चात होली का त्योहार मनाने के पीछे एक कारण यह भी है।

   
               क्या शिवलिंग की पूजा करना सही है

यह बात श्रद्धालुओ को ऐसी लगेगी जैसे गलत बोला जा रहा है लेकिन बात यह सत्य है कि केवल शिव पूजा से मोक्ष नहीं मिलता, क्योंकि शिवजी की आराधना ही मोक्ष का आधार नहीं है ।
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है

श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार

अध्याय 3 के श्लोक 9 में कहा है कि निष्काम भाव से शास्त्र अनुकूल किये हुए धार्मिक कर्म ( यज्ञ ) लाभ दायक है।

अध्याय 3 के श्लोक 6 से 9 में एक स्थान पर आँख बंद करके बैठ कर हठ योग करने को या समाधि लगाने को बिल्कुल मना किया है । कहा है कि शास्त्र अनुकूल भक्ति साधना करना ही लाभदायक है ।

अध्याय 8 के श्लोक 16 व अध्याय 9 का श्लोक 7 में बताया है कि ब्रह्म लोक से लेकर ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी आदि के लोक और ये स्वयं भी जन्म मरण व प्रलय में है । इसलिए ये अविनाशी नहीं हैं । जब ये अविनाशी नहीं है तो इनके उपासक भी जन्म मरण में ही हैं ।

देवी देवताओं व तीनों गुणों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की पूजा करना तथा भूत पूजा, पितर पूजा, यह सब व्यर्थ की साधना है इन्हें करने वालों को घोर नरक में जाना पड़ेगा । अध्याय 7 का श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 व अध्याय 9 के श्लोक 25 में यह प्रमाण है ।

व्रत करने से भक्ति असफल है। योग न तो बहुत अधिक खाने वाले का और बिल्कुल न खाने वाले का सिद्ध नहीं होता। अध्याय 6 के श्लोक 16 में प्रमाण है ।

जो शास्त्र अनुकूल यज्ञ हवन आदि पूर्ण गुरु के माध्यम से नहीं करते उन्हे लाभ नहीं होता। अध्याय 3 के श्लोक 12 में प्रमाण है
ब्रह्म (काल – क्षर पुरुष) सदाशिव की उत्पत्ति अविनाशी (पूर्ण ब्रह्म) परमात्मा से हुई है ।


अध्याय 3 के श्लोक 14 व 15 में प्रमाण है।
भगवान तीन हैं:- क्षर (ब्रह्म) पुरुष, अक्षर पुरुष (परब्रह्म) और परम अक्षर पुरुष (पूर्ण ब्रह्म) । अध्याय 15 के श्लोक 16,17 व 18 में प्रमाण है।
जिनमें से मोक्ष केवल पूर्ण ब्रह्म की भक्ति साधना से ही मिल सकता है । फिर हम कैसे कह सकते है कि केवल शिव जी की भक्ति साधना करने से पूर्ण लाभ मिल सकता है ।

कबीर साहेब जी ने कहा है
तीन देव (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की जो करते भक्ति, उनकी कभी न होवे मुक्ति।

वेद कतेव झूठे न भाई, झूठे वो जो इनको समझे नाही

अर्थ: वेद पुराण झूठे नहीं है, झूठे वो व्यक्ति हैं जो इनको समझ नहीं पा रहे हैं ।




  पूर्ण मोक्ष के अभिलाषी भक्तजन कैसे भक्ति करें?


इस मास में जो भी पूजा साधना की जा रही है वह बिल्कुल भी शास्त्र अनुकूल भक्ति विधि नहीं है। शास्त्रों के अनुसार भक्ति विधि केवल तत्वदर्शी संत ही बता सकते है ।

प्रमाण है गीता जी का अध्याय 15 के श्लोक 1 से 4 व 16 , 17 में ।

आध्यत्मिक ज्ञान ही मोक्ष का सार है । यह ज्ञान वर्तमान में केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पास है उनका ज्ञान सुनें और समझें । सभी साधन उपलब्ध है और पढ़े लिखे भक्त वेदों पुराणों और अन्य शास्त्रों से मिलान भी कर सकते हैं । यह मानव जन्म बार बार नहीं मिलता है अतः लख चौरासी से बाहर जाने के लिए मोक्ष मार्ग का चयन ध्यान पूर्वक करें ।

Wednesday, July 1, 2020

RakshaBandhan

 रक्षा बंधन क्यों मनाई जाती है
रक्षाबंधन हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन धूम-धाम से मनाया जाता है. हर साल बहन अपने भाई की कलाई में विधि अनुसार राखी बांधती है और अपनी रक्षा का वचन मांगती है. लेकिन क्या आप जानते है कि रक्षाबंधन क्यों बनाया जाता है? चलिए जानते हैं रक्षाबंधन मनाने के पीछे क्या हैं कारण.
Why Raksha Bandhan is celebrated
Why Raksha Bandhan is celebrated


सदियों से चली आ रही रीति के मुताबिक, बहन भाई को राखी बांधने से पहले प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधती है जिसे वृक्ष-रक्षाबंधन भी कहा जाता है. हालांकि आजकल इसका प्रचलन नही है. राखी सिर्फ बहन अपने भाई को ही नहीं बल्कि वो किसी खास दोस्त को भी राखी बांधती है जिसे वो अपना भाई जैसा समझती है और तो और रक्षाबंधन के दिन पत्नी अपने पति को और शिष्य अपने गुरु को भी राखी बांधते है.



पौराणिक संदर्भ के मुताबिक-
पौराणिक कथाओं में भविष्य पुराण के मुताबिक, देव गुरु बृहस्पति ने देवस के राजा इंद्र को व्रित्रा असुर के खिलाफ लड़ाई पर जाने से पहले अपनी पत्नी से राखी बंधवाने का सुझाव दिया था. इसलिए इंद्र की पत्नी शचि ने उन्हें राखी बांधी थी.


एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक, रक्षाबंधन समुद्र के देवता वरूण की पूजा करने के लिए भी मनाया जाता है. आमतौर पर मछुआरें वरूण देवता को नारियल का प्रसाद और राखी अर्पित करके ये त्योहार मनाते है. इस त्योहार को नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है.


ऐतिहासिक संदर्भ के मुताबिक-
ये भी एक मिथ है कि है कि महाभारत की लड़ाई से पहले श्री कृष्ण ने राजा शिशुपाल के खिलाफ सुदर्शन चक्र उठाया था, उसी दौरान उनके हाथ में चोट लग गई और खून बहने लगा तभी द्रोपदी ने अपनी साड़ी में से टुकड़ा फाड़कर श्री कृष्ण के हाथ पर बांध दिया. बदले में श्री कृष्ण ने द्रोपदी को भविष्य में आने वाली हर मुसीबत में रक्षा करने की कसम दी थी.


ये भी कहा जाता है कि एलेक्जेंडर जब पंजाब के राजा पुरुषोत्तम से हार गया था तब अपने पति की रक्षा के लिए एलेक्जेंडर की पत्नी रूख्साना ने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुनते हुए राजा पुरुषोत्तम को राखी बांधी और उन्होंने भी रूख्साना को बहन के रुप में स्वीकार किया.


एक और कथा के मुताबिक ये माना जाता है कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने सम्राट हुमायूं को राखी भिजवाते हुए बहादुर शाह से रक्षा मांगी थी जो उनका राज्य हड़प रहा था. अलग धर्म होने के बावजूद हुमायूं ने कर्णावती की रक्षा का वचन दिया.


रक्षाबंधन का संदेश-
रक्षाबंधन दो लोगों के बीच प्रेम और इज्जत का बेजोड़ बंधन का प्रतीक है. आज भी देशभर में लोग इस त्योहार को खुशी और प्रेम से मनाते है और एक-दूसरे की रक्षा करने का वचन देते हैं



रक्षा बंधन पैसे और उपहारों का लेन-देन है
अब यह त्यौहार नहीं केवल रस्म भर रह गया है। बाज़ार रक्षाबंधन के उपलक्ष्य में पैसा कमाने की मंशा से भर जाते हैं। सभी छोटे बड़े व्यापारी,हलवाई, ब्यूटी पार्लर, मेंहदी लगाने वाले, राखी बेचने वालों का उद्देश्य रक्षाबंधन तक अपनी मोटी कमाई कर लेना भर रह गया है। समाज में औरत के प्रति पुरूषों की मानसिकता अति कमज़ोर है। अपनी बहन, बेटी और मां के अलावा दूसरे की बहन की इज्ज़त करने वालों की संख्या बहुत ही कम है।

रक्षा की प्रार्थना तो केवल परमात्मा से करनी चाहिए
आज के समय में शादी, पढा़ई और देश सेवा के उद्देश्य से दूर हुए भाई – बहन सालों साल एकदूसरे से मिलना तो दूर रक्षाबंधन के दिन भी आपस में मिल नहीं पाते हैं। देश की सेवा की खातिर बार्डर पर तैनात भाई रक्षाबंधन के दिन बहन और परिवार के पास छुट्टी न मिलने के कारण पहुंच नहीं पाते। कई बार समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों के माध्यम से पढ़ने और देखने को मिलता है कि रक्षाबंधन से पहले देशसेवा के दौरान फौजी भाई की शहादत के चलते उसका पार्थिव शरीर उसके घर पहुंचता है। कितने ही भाई- बहन सड़क दुघर्टना, बिमारी और अकस्मात मृत्यु के कारण मर जाते हैं। तब रक्षासूत्र इनकी रक्षा क्यों नहीं कर पाता। किसी बहन की करूण प्रार्थना उसके ईष्ट देव तक क्यों नहीं पहुंच पाती?

पूर्ण परमात्मा से ही करनी चाहिए सलामती की प्रार्थना
इस समय संपूर्ण विश्व गहन उथल-पुथल के दौर से गुज़र रहा है। भारत के अधिकांश राज्य इस समय भंयकर तूफान और बाढ़ की चपैट में हैं। जिसके कारण लोग अपनों को और संपत्ति तक खो चुके हैं। ऐसे में एक बहन और भाई एक-दूजे की रक्षा करने में पूरी तरह से असमर्थ दिखाई देते हैं। वह दोनों असहाय हैं। प्राकृतिक आपदा हो या फिर किसी जानलेवा शारीरिक बीमारी के चलते बहन और भाई दोनों ही एक-दूसरे की मदद नहीं कर सकते। रक्षा करने वाला तो केवल परमात्मा है। जिनसे हमें प्रतिदिन, प्रतिक्षण अपनी और अपने परिवार की सलामती की दुआ करनी चाहिए ।

ये पिछलों की रीत हमें छोड़नी होगी
परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि कलयुग में कोई बिरला ही भक्ति करेगा अन्यथा पाखण्ड तथा विकार करेंगे। आत्मा भक्ति बिना नहीं रह सकती, परंतु कलयुग में मन (काल का दूत है मन) आत्मा को अधिक आधीन करके अपनी चाल अधिक चलता है। कलयुग में मनुष्य ऐसी भक्ति करेगा जो लोकवेद पर आधारित होगी जिसमें दिखावा, खर्च तो अधिक होगा परंतु परमेश्वर से मिलने वाला लाभ शून्य होगा। लोकवेद और शास्त्र विरुद्ध साधना में लगा हुआ मनुष्य , समाज में प्रचलित झूठी दिखावटी भक्ति करेगा। त्योहार, जन्मदिन, दहेज देना और लेना, मांस भक्षण, नशा करना, पूजा, हवन, कीर्तन, जागरण, तांत्रिक पूजा, शनि, राहू, ब्रहमा, विष्णु, शंकर, दुर्गा जी पर आरूढ़ रहेगा और पूर्ण परमात्मा की भक्ति को नहीं समझ पाने के कारण सदा माया में उलझा रहेगा। शास्त्र विरुद्ध साधना के कारण ही मानव का बौद्धिक, शारीरिक और सामाजिक स्तर गिर गया है। पूर्ण परमात्मा से मिलने वाले लाभों के अभाव में प्राकृतिक आपदाएं मानव के लिए चुनौती बन गई हैं।

Tuesday, June 23, 2020

Jagannath Temple

  1. जगन्नाथ मंदिर का रहस्य


उड़ीसा प्रांत में एक इंद्रधमन नाम का राजा था जो श्री कृष्ण जी के अनन्य भक्त था एक रात्रि श्री कृष्ण जी ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि जगन्नाथ नाम से मेरा एक मंदिर बनवा दो

श्री कृष्ण जी ने यह भी कहा था कि इस मंदिर में कोई भी मूर्ति पूजा नहीं होगी केवल इसमें एक संत छोड़ना है जो दर्शकों को पवित्र गीता अनुसार ज्ञान प्रचार करे स्वप्न में समुन्द्र तट वह स्थान भी दिखाया जहां पर मंदिर बनाना था ।सुबह उठकर राजा इंद्रध्मन ने अपनी पत्नी को यह बात बताई की आज रात्रि में श्री कृष्ण भगवान दिखाई दिए और मंदिर बनवाने के लिए कहा है। रानी ने कहा की नेक काम में देरी क्या ? सबकुछ उन्हीं का तो दिया हुआ है। उन्हीं को समर्पित करने में क्या सोचना? राजा ने उसी स्थान पर मंदिर बनवा दिया जो श्री कृष्ण जी ने स्वप्न में समुंदर के किनारे पर दिखाया था मंदिर बनने के बाद ,समुद्री तूफान उठा और मंदिर को तोड़ दिया । निशान भी नहीं बचा कि यहां पर मैं कोई मंदिर भी था। ऐसे ही राजा ने पांच बार मंदिर बनवाया पांचो बार समुंदर ने मंदिर को तोड़ दिया।


राजा ने निराश होकर मंदिर में बढ़ाने का निर्णय लिया। यह सोचा कि न जाने समुद्र कौन से जन्म का प्रतिशोध ले रहा है। कोष भी रिक्त हो गया। मंदिर बना नहीं। कुछ समय पश्चात पूर्ण परमेश्वर ज्योति निरंजन को दिए हुए वचन के अनुसार राजा इंद्रधमन के पास आए। तथा कहा की राजा आपको क्या परेशानी है तो राजा ने उन्हें अपनी सारी कहानी बधाई संत रूप में आए पूर्ण परमात्मा ने राजा से कहा की आप अब मंदिर बनवाओ अब मैं रक्षा करूंगा लेकिन राजा को विश्वास नहीं हुआ और कहा कि संत जी मुझे विश्वास नहीं हो रहा है। मैं भगवान श्री कृष्ण जी के आदेश अनुसार मंदिर बनवा रहा हूं लेकिन जब भगवान श्री कृष्ण जी की मंदिर की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं। अर्थात समुंद्र को नहीं रोक पा रहे हैं मैं पांच बार मंदिर बनवा चुका हूं और पांचों बार ही समुंदर ने मंदिर को तहस-नहस कर दिया। मैं यह सोचकर मंदिर बनवा रहा था कि भगवान मेरी परीक्षा ले रही हैं। परंतु अब तो मैं परीक्षा देने योग्य ही नहीं रहा हूं। क्योंकि कोष रिक्त हो गया है।  राजा ने कहां की अब मंदिर बनवाना मेरे बस की बात नहीं है। परमेश्वर कबीर साहिब जी ने कहां की वह पूर्ण परमात्मा ही सभी कार्य करने में सक्षम है जिसने इस सृष्टि को बनाया है। अन्य प्रभु नहीं। मैं उस परमेश्वर के वचन से शक्ति प्राप्त हो। मैं समुंदर को रोक सकता हूं। मैं नहीं मान सकता की श्री कृष्ण जी से भी कोई प्रबल शक्ति युक्त प्रभु है। जब वही समुंद्र को नहीं रोक पाए तो आप कौन से खेत की मूली हो। मुझे विश्वास नहीं होता तथा और ना ही वित्तीय स्थिति मंदिर बनवाने की है। संत रूप में आए कबीर देव ने कहा कि राजन अगर मंदिर बनवाने का मन करें तो मेरे पास आ जाना। मैं अमुक स्थान पर रहता हूं। अब के समुंदर मंदिर को नहीं तोड़ पाएगा यह कह कर प्रभु चले जाए


उसी रात्रि में प्रभु श्री कृष्ण जी ने फिर राजा इंद्र दमन को दर्शन दिए तथा कहा इंद्र दमन एक बार फिर महल बनवा दे जो तेरे पास संत आया था उससे संपर्क करके सहायता की याचना कर ले वह ऐसा वैसा संत नहीं है उसकी शक्ति का कोई वार् - पार नहीं है। राजा इंद्र दमन नींद से जागा स्वपन का पूरा वृतांत अपनी रानी को बताया। रानी ने कहा प्रभु कह रही है तो आप मत चूको। प्रभु का महल फिर से बनवा दो। रानी की सद्भावना युक्त वाणी सुनकर राजा ने कहा अब तो कोर्स भी खाली हो चुका है। यदि मंदिर नहीं मैं बनवाऊंगा, तो प्रभु प्रसन्न हो जाएंगे। मैं तो धर्मसंकट में फस गया हूं। रानी ने कहा आप मेरे गहने रखे हैं उनसे आसानी से मंदिर बन जाएगा। आप यह गहने लो तथा जो पहन रखे थे निकालकर कहते हुए रानी ने सर्व गहने जो घर पर रखे थे तथा जो पहन रखे थे निकालकर प्रभु के निमित्त अपने पति के चरणों में समर्पित कर दिया तथा राजा इंद्र दमन उसी स्थान पर गया जो परमेश्वर ने संत रूप में आकर बताया था।



कबीर प्रभु को खोज कर समुंदर को रोकने की प्रार्थना की। प्रभु कबीर जी ने कहा कि जिस तरफ से समुद्र उठकर आता है वहां समुंदर के किनारे एक चोरा बनवा दो। सुपर बैठकर मैं प्रभु की भक्ति  करूंगा तथा समुंद्र को रोकुंगा। राजा ने समुद्र के किनारे एक चोरा बनवा दिया तथा कबीर साहिब जी  उस पर बैठ गए। छठी बार मंदिर बनना प्रारंभ हुआ।
कबीर जी ने मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया समुंद्र भी मंदिर को गिराने के लिए उच्च वर्ग के साथ उठता था और ऐसा असहाय हो जाता था और रुक जाता था क्योंकि कबीर भगवान हाथ उठाते थे और अपनी शक्ति से समुंद्र को रोक देते थे। तब समुद्र ने कबीर जी से निवेदन किया की मैं आपके समक्ष शक्तिहीन हूं।मैं तुमसे जीत नहीं सकता लेकिन मैं अपना बदला कैसे लूं कृपया समाधान बताइए कभी भगवान ने कहा कि आप द्वारिका को अपने में विलीन कर लो और अपना क्रोध शांत करो क्योंकि द्वारिका खाली थी वह स्थान जहां कबीर जी ने समुद्र को रोका था वह स्मारक के रूप में एक गुम्बद आज भी मौजूद है। वर्तमान में एक के महंत वहां रहते हैं।
उसी दौरान नाथ उत्तराधिकारी का एक सिद्ध महात्मा आया और उसने राजा से कहा एक मूर्ति के बिना यह एक मंदिर कैसे होगा? चंदन से मूर्ति बनाकर मंदिर में स्थापित करो। राजा को 3 मूर्ति बनाने का आदेश दिया।   राजा सिद्ध महात्मा आदेश मानकर मूर्ति बनाने का कार्य शुरू किया तथा मूर्ति पूर्ण होने के बाद मूर्ति पूरी ट्रक टूट जाती थी राजा चितिंत तो गया। सुबह जब राजा अपने शाही दरबार में पहुंचे तब कबीर परमेश्वर एक शिल्पकार के रूप में आए और उन्होंने राजा से कहा कि मेरे पास 60 वर्षों का अनुभव है। मैं मूर्तियां बनाऊंगा और वह टूटेंगे नहीं।मुझे एक कमरा दो जिसमें मैं मूर्तियां बना लूंगा और जब तक मूर्ति नहीं बनती तब तक मैं अंदर ही रहूंगा और कोई दरवाजा नहीं भोलेनाथ चाहिए क्योंकि अगर बीच में ही दरवाजा खोला तो मूर्ति जितनी बनी है उतनी ही रह जाएगी राजा ने यह सुनकर कहा कि ऐसा ही होगा वहां कुछ दिनों के बाद नाथ जी फिर से आए, और उनसे पूछने पर राजा ने पूरी कहानी बताई। तब नाथ जी ने कहा शिल्पकार पिछले 10-12 दिनों से मूर्ति बना रहा है। ऐसा ना हो कि वह गलत तरीके से मूर्ति बना रहा है हमें मूर्तियों को देखना चाहिए यह सोच कर वह कमरे में दाखिल हुए फिर वहां पर कभी परमेश्वर नहीं थे वहां से भी गायब हो गई थी तीन मूर्तियां बनाई गई थी लेकिन बाधित होने कारण मूर्तियों के हाथों और पैरों के अंग नहीं बने थे इसलिए मूर्तियों को बिना अंग के मंदिर में रखा गया



कुछ समय पश्चात कुछ पंडित जगन्नाथ पुरी मंदिर में मूर्तियों का अभिषेक करने पहुंचे। मंदिर के दरवाजे के सामने मंदिर के सामने कभी भगवान खड़े थे अमन पंडित जी ने कभी परमात्मा को अछूत कहते हुए उन्हें धक्का दिया और मंदिर में प्रवेश किया।आवेश करने पर उन्होंने देखा कि सभी मूर्तियों में कबीर भगवान की उपस्थिति प्राप्त कर ली थी पंडित विश्व में में पड़ गया तथा बाद में पंडित ने कबीर भगवान को अछूत कह कर दिखा दिया जो कुष्ठ रोगी थे। लेकिन दयालु भगवान कबीर जी ने उसे ठीक कर दिया। उसके बाद जगन्नाथ पुरी मंदिर में कभी भी अछूत का अभ्यास नहीं किया गया।

ऐसे ही श्री जगन्नाथ जी का मंदिर अर्थात नाम स्थापित हुआ

Wednesday, June 17, 2020

Janmashtami: lord Krishna

जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है किस लिए मनाई जाती है क्योंकि इस दिन भगवान कृष्ण जी का जन्म हुआ था उन्होंने इस धरती पर अवतार लिया था तथा इस धरती को राक्षसों से बताने के लिए वह यहां पर अवतरित हुए थे कारण जन्माष्टमी मनाई जाती है


 जन्माष्टमी पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने हेतु कृष्ण रूप में अवतार लिया, भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्ररूप में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
Krishna janmashtami
Krishna janmashtami


श्री कृष्ण जी ने अनेक लीलाएं की श्री कृष्ण जी ने इस धरती से पापियों से बचाया तथा सभी को सुख प्रदान किया लेकिन श्री कृष्ण जी पूर्ण परमात्मा नहीं है क्योंकि उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता जी में स्वयं ने कहा है श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय नंबर 18 श्लोक नंबर 62 में अर्जुन को बताया कि मेरे से सर्वश्रेष्ठ शक्तिशाली भगवान कोई और है इसलिए आप उनकी शरण में जाओ इससे सिद्ध होता है कि श्री कृष्ण जी पूर्ण परमात्मा नहीं है वह केवल तीन लोक के पूर्ण परमात्मा है
Lord Krishna
Lord Krishna